विषय कषायों को त्यागना ही उत्तम त्याग धर्म है-पं. प्रबल जी शास्त्री
देवास। दिगम्बर जैन समाज के पर्वाधिराज पयूर्षण पर्व के 8 वें दिन मंगलवार को पं. प्रबल जी शास्त्री ने कहा कि - त्यागी और साधुओं को चारों प्रकार का दान देना, विषय-कषायों को त्यागना उत्तम त्याग धर्म है। परोपकार के लिए अपने साधन(द्रव्य आदि) का त्याग भी इसी श्रेणी में आता है । दान के संदर्भ में पंडित जी ने कहा कि दान या त्याग में किसी भी प्रकार की आकांक्षा, पछतावा, प्रदर्शन, अहंकार, हिंसा और किसी भी प्रकार का कोई उदेश्य यदि हो तो वह दान नहीं, त्याग नहीं। - जिस वस्तु की अब मुझे ज़रूरत नहीं उसे किसी को दे देना त्याग नहीं है। मंदिर जी में चंद रुपये दान दिया और अपना नाम शिला पर अंकित करा लिया। मंदिर जी में पंखा देने वाले पंखे की पंखुड़ी पर अपना नाम लिखवा देते हैं । पत्थर लगवाने वाले, फर्श पर, दीवारों पर अपना नाम लिखवा देते हैं। वेदी बनवाने के लिए कुछ पैसे दे दिए, तो वेदी पर ही नाम अंकित करवा दिया। अलमारी/चौकी/मेज/बर्तन जो दिए उसपर ही नाम लिखवा दिया। याद रखें - मेरा नाम हो, के अभिप्राय से दिया हुआ अरबों-खरबों का दान भी निष्फल है, कु-दान है। हमे प्रतिदिन अपनी यथा-शक्ति अनुसार आहा...