#Dewas को एक पहचान दी #कुमार_गंधर्व ने .. जन्म शताब्दी विशेष पुण्यतिथि , 12 जनवरी Late Kumar #Gandharva birth centenary special death anniversary 12 January
यह सदी पदमविभूषण कुमार गंधर्व जी की शताब्दी भी है । इसमें कुमार जी की मोहक गायकी का रस घुला है। देवास जहाँ बहुत सारे देव देवी मिलकर पवित्रता, उच्च जीवन, मूल्यों, सात्विकता, भक्ति, और कला के अपूर्व संगम से इसे एक अलग रंग देते हैं और हमें गर्व है की देवासवासी इस परंपरा के वाहक और वारिस है।
जब देश आजाद हुआ उस समय 1948 में कुमार जी ख्याति अर्जित कर चुके थे। इस ख्याल गायक को देवास - इतना भाया, इसके देवत्व ने, सादगी ने इतना प्रभावित किया कि ‘कुमार जी’ देवास में आये मगर सैलानी की तरह नही आत्मीय डोर से जुड़कर देवास वासी हो गये। इस तरह देवास ही नही पूरा मालवा, समग्र मध्यप्रदेश को स्वतंत्रता के पुनीत अवसर पर कर्नाटक, गायकी, संस्कृति के साथ माता सरस्वती ने अप्रतीम भेंट दी और अतंत कुमार जी म.प्र. के हो गये।
कुमार जी पर अनेकानेक टिप्पणियाँ , समीक्षाए हुई है। उनके प्रशंसको और असहमत लोगों ने सभी ने अपने अपने धर्म निभाए लेकिन उनकी साधना, उपलब्धियाँ, प्रयोगों को सभी ने स्वीकारा। यही उनकी खूबी रही। ‘साधना‘ के सोपान की यात्रा में उन्हें पहले “पद्म भूषण” और कुछ वर्ष बाद “ पद्म विभूषण” सम्मान से भारत के राष्ट्रपति ने सम्मानित किया। इस सम्मान ने हर देवास वासी, हर मालव वासी, प्रदेश के नागरिक को सम्मानित अनुभव कराया जो आज तक कायम है। हमारे दिलों में स्पंदित होता रहता है।
कुमारजी महान गायक थे। उन्हें उनकी हैसियत पता थी लेकिन वे हैसियत को कंधो पर रखे कभी सामने नहीं आते थे। सादगी, विनम्रता स्नेहशीलता उनमें हिलोरे भरती थी। हम इस बात के गवाह हैं कि वे सामान्य से सामान्य व्यक्ति से उतने ही स्नेह भाव से मिलते थे ।अपने बचपन से ही उनके ‘कला‘ संसार से परिचय हुआ था और कला के वे संस्कार अब तक जीवन को रसमय बनाए हुए है।
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हमारी पीढ़ी इस माने में कला से जुड़ाव में समृद्ध रही है कि उनके रहते हर बरस देवास में हमें संगीत जगत की उन हस्तियों को सुनने देखने का अवसर मिला जो संगीत जगत में शीर्ष कलाकार रहे हैं।
कुमारजी के सहजपन और आत्मीयता से जो लोग रूबरू रहें हैं, उन सभी को वे अपने “कुमार जी” “अपने बाबा” लगते थे। यह आजीवन रिश्ता रहा।
उनका स्नेह-अपनापन, आशीष जीवन की बडी उपलब्धि रही है। कुमार जी का यह शताब्दी वर्ष है । कुमार जी भानुताई, मुकुलभाई की परंपरा -खानदान की डोर में कहीं भटकाव नहीं आया । कलापिनी कोमकली, भुवनेश कोमकली- ने उस गायकी, सांस्कृतिक परंपरा को पूरी जवाबदारी से थामा। कितनी अच्छी सुकून भरी बात है कि कुमारगंधर्व, भानुताई, वसुताई, की आत्मीयता, रिश्तों की डोर, अपनत्व का स्नेहिल सूत्र कलापिनी जी, भुवनेशजी ने साधना, संस्कार, ऊर्जा के साथ - अपने जीवन में उतारा, वे आज भी सभी को वही मान सम्मान देते है, अपना मानते है। कलापिनी कोमकली अपनी शास्त्रीय गायकी से भारतीय कला संगीत जगत को आलोकित कर रही है वही भुवनेष कोमकल, अपनी प्यारी,मोहक आवाज में शास्त्रीय संगीत की महफिलों में सशक्त उपस्थित दर्ज करा रहे है। आज शास्त्रीय संगीत की गायकी में कलापिनी जी तथा भुवनेशजी ने अपना शानदार स्थान बनाया है। कुमार जी की शताब्दी के वर्ष में वे यादों में जगमगा रहे है। वे सदा रहेगे।
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