प्रकाश से अंधकार में ले जाने वाली पाश्चात्य संस्कृति को खत्म करना और अंधेरे से प्रकाश की ओर लाने वाली सनातनी भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देना भी हिंदूत्व की सच्ची सेवा है-सांसद सोलंकी।
- सनातनी भारतीय परंपरा के छोटे-छोटे कार्यों को अपने सार्वजनिक जीवन में उतारने से ही हम अपनी आने वाली पीढ़ी को संस्कारवान बनाने की परीकल्पना को साकार कर सकते है।
देवास - पंडित अजय शर्मा - आजादी (१९४७) के बाद से ही भारत में धीरे-धीरे पाश्चात्य संस्कृति का चलन बढ़ने लगा था। हालांकि बुजुर्गों से प्राप्त जानकारी अनुसार मुंबई बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री ने एकतरफा पूरी मेहनत ईमानदारी से भारतीयों के दिलों दिमाग में फिल्मों के माध्यम से पाश्चात्य संस्कृति का फूहडपन, का बीज बोना शुरू किया था। जो धीरे-धीरे सनातनी भारतीय संस्कृति के विपरित परिस्थितियों को पीढ़ी दर पीढ़ी फ़ूहड़ बीज को जन्म देने में अहम मुख्य भूमिका निभाई।और आज तक भी निभाती आ रही है।
वैसे पहले ये फिल्में बंद कमरे (टाकीज) के पर्दे तक ही सीमित रहती थी जो कि टाकीज में फिल्म देखने जाने वाले चंद पैसे वालों तक ही ये पाश्चात्य संस्कृति भी सीमित रहती थी लेकिन बदलते दौर के अनुसार टीवी आई और चैनल आ गये तो ये घर-घर तक फिल्मों का प्रचार प्रसार पहुंच गया लेकिन अब तो 21वीं शदी में मोबाइल ने सारी हदें ही लांघ दी। अब हर युवा ( लड़के और लड़की) सभी में पाश्चात्य संस्कृति की ओर आकर्षित होकर समावेश हो गयी और अपनी सनातनी भारतीय संस्कृति को अपने शैक्षणिक योग्यता और पारिवारिक स्टेंडर्ड के विपरित ( बैकवर्ड, ओड, ढकिया नुशी, सहित बाबा आदम के जमाने की परंपरा संस्कृति बता कर,) यहां तक की अपने दोस्तों व दूसरे रिस्तेदारो का उल्लेख (बताकर ) अपनी सभ्यता वाली संस्कृति को भूल गये जो सही मायने में एक साजिस के तहत राजनैतिक वोट बैंक के मद्देनजर बढ़ता ही जा रहा है।
ठीक इसी प्रकार पाश्चात्य संस्कृति और आततायियों, विधर्मियों , के शासनकाल का महिमा मंडन भी इसी एकतरफा फिल्मी इंडस्ट्री के साथ साथ देश के तथाकथित इतिहासकारों और शिक्षा विभाग के शिक्षा विदों ने भी साजिश के तहत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ये बहुत ही गंभीरता पूर्वक विचारणीय चिंतन कर इसे बदलने की अत्यंत महत्वपूर्ण आवश्यकता है।
हालांकि वर्तमान स्थिति में राजनीतिक दल के मुखियाओं द्वारा भी सनातनी भारतीय संस्कृति को सार्वजनिक जीवन में महत्वपूर्ण मानते हुए कुछ-कुछ क़दम उठाए जा रहे हैं जो प्रशंसनीय है, तारिफ के लायक है, जिससे देश के भावी भविष्य युवाओं को भटकने से रोका जा सके और सही मार्गदर्शन किया जा सके।
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प्रकाश से अंधकार में ले जाने वाली पाश्चात्य संस्कृति को खत्म करना और अंधेरे से प्रकाश की ओर लाने वाली सनातनी भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देना भी हिंदूत्व की सच्ची सेवा ही है-सांसद सोलंकी
प्राप्त जानकारी अनुसार भारत देश के लगभग-लगभग हर क्षेत्र में जन्म दिवस मनाने और शादी की सालगिरह मनाने जैसे कार्यक्रम घर में, गार्डन में, होटलों में, सभी अपनी-अपनी सामर्थ्य अनुसार आयोजित करते हैं और कार्यक्रम में वेज अथवा अण्डायुक केक काटा जाता है।
केक काटने के पूर्व व्यक्ति के जीवन की इच्छाएं, खुशियां, और तरक्की के विचारों को प्रकाश से अंधकार की ओर ले जाने वाली पाश्चात्य फ़ूहड़ संस्कृति को अपने अपने स्टेंडर्ड के अनुरूप महत्व देते हुए केक पर एक दो चार मोमबत्तियाँ जलाकर लगाईं जाती है और उन मोमबत्तियों को उस व्यक्ति द्वारा फूंक मारकर बूझाया जाता है । तत्पश्चात केक काटा जाता है जो कहीं ना कहीं उस व्यक्ति के जीवन मे एक नकारात्मकता अंधकार को प्रभावित करता है।
इसी नकारात्मक अंधकार को खत्म करने की पहल देवास शाजापुर क्षेत्रीय सांसद महेंद्र सिंह सोलंकी ने की है और सांसद सोलंकी द्वारा अपने लोकसभा क्षेत्रों में विगत कई महीनों से अपने घर परिवार, रिस्तेदारो, पहचान वालों , चाहने वालों , समर्थकों, सहित समाज में भी कहीं भी किसी का भी जन्मदिन है या शादी की सालगिरह है और उस कार्यक्रम में यदि सांसद सोलंकी आमंत्रित हैं तो उस अवसर पर उस व्यक्ति के यहां सांसद सोलंकी द्वारा कार्यक्रम में सनातनी भारतीय संस्कृति का अलख जगाने और आने वाली पीढ़ी को संस्कारवान व सकारात्मक उर्जावान प्रकाशवान उजला भविष्य देने की छोटी सी ही सही किंतु अपनी परंपरा को प्रचलित तो कर रखी है जो देवास जिले सहित पूरे लोकसभा क्षेत्र में भी धीरे-धीरे खासी प्रचलित हो रही है।
सांसद सोलंकी का कहना है कि अपने जीवन को प्रकाश उजाला से नकारात्मक अंधकार की तरफ ले जाने वाली पाश्चात्य संस्कृति को खत्म करना और नकारात्मक अंधकार से जीवन को सकारात्मक उर्जावान प्रकाशवान उजाला की तरफ लाने वाली हमारी हजारों लाखों वर्षों पुरानी सनातनी भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देना भी हिंदूत्व की सच्ची सेवा ही तो है।
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साथ ही सांसद सोलंकी का कहना व मानना है कि हमारी सनातनी भारतीय संस्कृति परंपरा के छोटे छोटे कार्यों को अपने सार्वजनिक जीवन में उतारने से ही हम अपनी आने वाली पीढ़ी को सकारात्मक उर्जावान और संस्कारवान बनाने कि परीकल्पना को साकार कर सकते है।
जन्मदिन तथा शादी सालगिरह के कार्यक्रम में सांसद सोलंकी द्वारा जन्मदिन वाले उस व्यक्ति की उम्र के जीतने और शादी सालगिरह में शादी की उम्र के जीतने दीपक प्रज्वलित करवा कर उन दीपकों को उस व्यक्ति के घर के मंदिर सहित पूरे घर में उजाला प्रकाश पुंज उर्जा का संचार करवा दिया जाता है तो घर में और घर के सदस्यों के मन मस्तिष्क में दीपावली जैसी रौनक खुशी का प्रकाश पर्व के रुप में परिवर्तित हो जाता है।जो वाकई बहुत ही सुन्दर व मनभावन, खुशहाली भरा आकर्षित करने वाला दृष्य़ रहता है और अगले कार्यक्रम तक वो खुशियां भी घर में बरकरार रहती है।
सनातनी भारतीय परंपरा के छोटे छोटे कार्यों को अपने सार्वजनिक जीवन में उतारने से ही हम अपनी आने वाली पीढ़ी को संस्कारवान बनाने कि कल्पना को साकार कर सकते है।
इसी श्रखंला में हमने भी 24/7/2023 को संध्याकाल में सनातनी भारतीय संस्कृति अनुसार दीप प्रज्ज्वलित कर घर में ही मनाया बेटे का जन्मदिन।
हालांकि केक पर मोमबत्तियां जलाकर उसे बुझाने वाली, उजाले से अंधकार में लेजाने वाली पाश्चात्य संस्कृति को खत्म करने का सांसद के संकल्प के साथ एक कदम हमने भी आगे बढ़ाया है। और अपनी सनातनी भारतीय परंपरा अनुसार बेटे कि उम्र के जितने दीपक जलाकर बेटे का जन्मदिन मनाकर हिंदुत्व कि सेवा में क्षणिक भागीदारी निभाने कि एक छोटी सी कोशिश कि है।
यहां हमारे द्वारा दीपक भी आटे के बनाकर लगाए गये, जो दूसरे दिन बुझी हुई रुई कि बत्ती निकाल कर आटे के दीपक गाय और तालाब में मछलियों के भोजन में काम आ गये इससे उनका आशीष भी मिला।
ठीक इसी प्रकार खेड़ापति हनुमान मंदिर के सामने एमजी रोड पर स्थित अभिभाषक अतुल कुमार पंड्या के कार्यालय में भी कल दिनांक 28/7/2023 कि संध्याकाल में अभिभाषक अखिलेश चौधरी का जन्म दिवस कार्यालय के सभी अभिभाषकों ने मिलकर मनाया । यहां भी केक पर मोमबत्तियां जलाकर ना लगाई गयी और ना ही मोमबत्ती बुझाई गई। यही तो वो कदम है जो अपने सनातनी भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभा रहा हैं।
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हालांकि पूर्व में जनवरी 2023 में भी जवाहर नगर स्थित संजय कटारिया का जन्मदिन भी स्वयं सांसद सोलंकी ने अपनी उपस्थिति में ही दीपक प्रज्वलित करवा कर मनवाया गया था। ऐसे अनेक उदाहरण है जो सांसद सोलंकी द्वारा कार्यक्रम आयोजित करवा कर अपनी सनातनी भारतीय संस्कृति परंपरा को प्रमुखता से प्रचलित करने का सिलसिला जारी है।
इसी विलुप्त होती सनातनी भारतीय परंपरा को फिर से जागृत करने के लिए सांसद महेंद्र सिंह सोलंकी द्वारा निरंतर सार्वजनिक जीवन में छोटे छोटे कार्यों को प्रचलित करने कि पूरी कोशिश की जा रही है।
जबकि हजारों लाखों वर्षों से अंधकार से प्रकाश की ओर लेजाने की हमारी सनातनी भारतीय परंपरा रही है। इसके लिए हमें अपने सार्वजनिक जीवन में इसी प्रकार के बहुत छोटे छोटे से कार्य करने से ही हम हिंदुत्व कि अलख जगाने में सहभागी बन सकते हैं।
और अंत में -
हालांकि अब तो सभी राजनीतिक पार्टियों को और हिंदुत्व का ढोंग रचकर हिंदुत्व का राग अलापने वालों को भी अपनी सनातनी भारतीय संस्कृति परंपरा में ढलना चाहिए। और अपने व अपने वालों के घर परिवार समाज सहित फिल्म इंडस्ट्री, नाटक इंडस्ट्री और विज्ञापन इंडस्ट्री में भी सनातनी भारतीय हिंदुत्व कि परंपरा को प्रमुखता से लागू करवाना चाहिए। सनातनी भारतीय संस्कृति परंपरा का अलख जगाना ही सनातनी भारतीय हिंदुत्व का शंखनाद करने में अपनी अहम भूमिका निभानी चाहिए।
जो सांसद महेंद्र सिंह सोलंकी द्वारा बिना किसी बैनर होर्डिंग पोस्टर लगाएं बिना और बिना किसी प्रचार प्रसार किए बिना ही सनातनी भारतीय हिंदुत्व का शंखनाद करना मकसद बना रखा है।, वो भी सांसद द्वारा शांति दूत कि भांति प्रचलित करना ही उनकी हिंदुनिष्ठ भावना को दर्शाती है। यही सनातनी भारतीय हिंदुत्व परंपरा का असली शंखनाद है। नाकि खुद को पुजवाने के स्वार्थी मकसद से अपने नाम के आगे पीछे हिन्दुत्व से संबंधित बड़े बड़े नाम स्लोगन टाईटल उपनाम लिखने से नहीं।
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