देविप्रा में स्कीम भूमियों के छोड़ पकड का खेल ! पार्टनरशिप में खरीदी गई 93 लाख रुपए प्रति बीघा के हिसाब से जमीन ? DDA
- देविप्रा में चंपा लाल गोस्वामी से लेकर शरद पाचुनकर तक 1992-93 के राजपत्र में प्रकाशित हुई और खुदने ही रजिस्टर में दर्ज कराई स्कीम भूमियों के छोड़ पकड का खेल 2020 से नई डिजाइन व प्रोजेक्ट के साथ लांच !
- भू-अर्जन के तहत म.प्र.नगर तथा ग्राम निवेश (संसोधन अधिनियम 2019) राजपत्र प्रकाशन दिनांक 17/2/2020 को डिज़ाइनर और प्रोजेक्टर ने बनाया अपने व अपने वालों के लिए स्वहित स्कीम योजना !
- क्या शासन की मंशा अनुरूप वर्षों से जमीन मालिक किसानों के हित में नवागत देवीप्रा युवा अध्यक्ष इस स्कीम स्कीम रेसो डील के खेल को सुधारने का न्यायोचित क़दम उठाएंगे या..... ?
देवास / पंडित अजय शर्मा (94250 51690) - देवास में देविप्रा स्थापना के बाद 1992-93 के राजपत्र में प्रकाशित देवास शहर के अलग-अलग हिस्सों से ज़मीनों के सर्वे नंबर जारी हुए, जो देविप्रा कि स्कीम में शामिल हुए। पहले चंपा लाल गोस्वामी की अध्यक्षता में देविप्रा में भू-अर्जन के तहत स्कीम में भूमियों को अधिग्रहण करने के लिए स्कीम के तहत प्रोजेक्ट तैयार करने का सिलसिला शुरू हुआ, बाद में वो स्कीम का असर दिखा तो, गोस्वामी के समय से ही बदलते समय अनुकूल स्कीम का मक़सद भी धीरे धीरे बदलता गया और विश्वास होटल भी देविप्रा के छोड़ पकड़ के खेल में ठेकेदारों के विश्वास पर मैन रोड पर बनी, जो सर्वविदित है। समय बदलता रहा देविप्रा में भी प्रशासनिक अधिकारी व प्रशासनिक पदाधिकारी भी बदलते गये। जय सिंह ठाकुर, मनोज राजानी , राजेंद्र बापट, राय सिंह सेंधव , शरद पाचुनकर (दूदू भैय्या) सहित अनेक पदाधिकारी मंडल का आगमन होता रहा। बीच-बीच में देविप्रा पर पेरी तरह प्रशासनिक अधिकारियों का भी कब्जा रहा है। हालांकि सभी ने अपने-अपने तरीके से देविप्रा को चलाने में सक्षमता दिखाई. दूसरी ओर जादूगरों ने स्कीम की आड़ में जमीनों का छोड़ पकड़ का खेल तो ऐसा चलाया कि करोड़पति हो गये, जो जग जाहिर है।
यहां तक कि जिस जमीन पर इनकी नियत आ जाती उस ज़मीन के सर्वे नंबर एक रजिस्टर में दर्ज कर लिया जाता और जमीन मालिक किसान को बोला जाता कि ये जमीन स्कीम में है फिर उसे स्कीम से निकालने के नाम पर लाखों करोड़ों का खेल ऐसा चला जो मनोज राजानी, जय सिंह ठाकुर की अध्यक्षता में सीईओ अवध श्रोत्रिय के कार्यकाल में हुए। खेल का फायदा उठाकर सीईओ श्रोत्रिय का मकान देविप्रा के पीछे ही देविप्रा से लिया जो प्रमाण है। लाखों करोड़ों रुपए का खेल हुआ जो विकास नगर व आवास नगर, सुपर मार्केट निर्माण कार्य उसमें भी चैम्बर के उपर राजीव गांधी कि मूर्ति स्थापना ने भी जोरों पर सुर्खियां बटोरी और मुखर्जी नगर कि एम आर में रोड के बेस कीमती प्लाटों को सामाजिक बंदू के नाम पर लेकर लाखों करोड़ों रुपए का खेल हुआ, जिसमें गंगा इंडस्ट्री कि बढ़ती ख्याति साथ में कालोनाईजर बनना और ठाकूर का बिलावली स्थित पेट्रोल पंप तथा अनेक बीघा जमीन के मालिक बन गये। जो देविप्रा में पद के अनेक प्रमाण हैं जो काम्प्लेक्स व मकानों प्लाट के नाम पर खेल नीलामी के हुऐ ।
समय के साथ बदलाव होता गया और राय सिंह सेंधव व शरद पाचुनकर तक स्कीम के छोड़ पकड़ का खेल खूब अंधाधुंध जोरों-सोरों से चला जिसके अनेक प्रमाण है। राय सिंह सेंधव की अध्यक्षता में सीईओ आर. एस. अगस्ति के कार्यकाल में यहां तक कि स्कीम का छोड़ पकड़ के खेल के साथ साथ देविप्रा की कालोनीयों के शोपिंग काम्प्लेक्स और मकान प्लाट में भी मनमर्जी मुताबिक लाखों करोड़ों रुपए के निजी स्वार्थ में अपने व अपने वालों को दिल खोलकर जनता के हक को रेवड़ी कि तरहां ऐसा बांटा जैसे ये खुद अपनी जेब से दान कर रहे हैं। जब कि जिंदगी में कभी किसी गरीब की मदद नहीं की। बल्कि विघ्न संतोषी व विघटनकारी अवसरवादियों को ही पारिवारिक पार्टनर बनाया और भोपाल से दिल्ली तक उनकी सेंटिंग भाई की तरहां करवा कर हथियारों के पूरे को लायसेंस दिलवाने वाले देविप्रा को लाखों करोड़ों रुपए का चूना लगाया। आवास नगर शापिंग काम्प्लेक्स परिसर जिसका जिंदा प्रमाण है।
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इतना ही नहीं बल्कि समय के साथ देविप्रा की सत्ता बदलते ही शरद पाचुनकर की अध्यक्षता में सीईओ सी.के. गुप्ता के कार्यकाल में देविप्रा के आठ दस प्रकरण करोड़ों रुपए के लेन-देन कर माननीय न्यायालय को गुमराह कर स्कीम कि भूमियों को मुक्त कर एन ओ सी देने वाले सी ईओ सी. के. गुप्ता जो शरद पाचुनकर की अध्यक्षता में दुर्गेश अग्रवाल व मतीन अहमद जैसे जमीन जादूगर के उपाध्यक्ष कार्यकाल में हुए फ्राड के बाद में देविप्रा के प्रशासनिक अधिकारियों ने उन आठ प्रकरण के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल लगाई जो विचाराधीन है।
इसी बीच प्रशासनिक कार्यकाल रहा और देविप्रा की बागड़ोर आयुक्त विशाल सिंह चौहान और कलेक्टर चंद्र मौली शुक्ला के हाथ में आ गई । देविप्रा को भी इन्होंने (डिजाइनर व प्रोजेक्टर) ने अछूता नहीं छोड़ा। देविप्रा में भी विकास को इतना पागल किया कि आने वाले जिम्मेदारों के लिए सिर्फ नीचे फेवर बलोक और बाउंड्री वॉल ही बची। वो भी अगर एक दो माह का समय और मिलता तो वो भी निपटा देते। हालांकि दोनों के पास प्रोजेक्ट और डिजाइन कि तो मानो खदान ही रहती थी। ऐसा कुछ नहीं अभी भी भर-मार है। इन्होंने छोटे काम कभी किये ही नहीं।
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शासन द्वारा भू-अर्जन करते समय जमीन मालिक किसान को नगद मुआवजा राशि दी जाती रही है, जिसे संसोधन कर किसानों को नगद मुआवजा राशि नहीं देते हुए देविप्रा उस किसान को डेवलप प्लाट के आधे-आधे का पार्टनरशिप करेगा, इससे दोनों को बराबर फायदा होगा और किसान अपनी जमीन का आधा मालिक भी बना रहेगा। इसको म.प्र.नगर तथा ग्राम निवेश (संसोधन अधिनियम 2019) के नाम से जाना जाता है, जो म.प्र.राजपत्र प्रकाशन दिनांक 17/2/2020 है। इसे स्थानीय जिम्मेदार इसे रेसो डील के नाम से भी जानते हैं। शासन ने इसे जमीन मालिक किसानों के फायदे के लिए संंसोधित करते हुए, पार्टनरशिप का संसोधन अधिनियम लागू किया तो देवास में डिजाइनर और प्रोजेक्टर ने इस अधिनियम को भी नहीं छोड़ा,। इसमें भी नई डिजाइन डाली और स्कीम की भूमि को किसी भी अन्य अपने वाले को खरीदवाकर उससे रेसो डील देविप्रा के साथ करते हैं।
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यहां तक कि ज़मीन मालिक किसान को उसकी भूमि देवीप्रा स्कीम में होने से ना बेच सकता ना डेवलप कर सकता है, बताया जाता है, उससे स्कीम के नाम पर डराकर जमीन ओने पौने दाम पर खरीदवाकर देविप्रा से रेसो डील एग्रीमेंट कर लाखों रुपए के वारे-न्यारे वाले ही करने की नई स्कीम तैयार की और लागू भी कर दी।
इतना ही नहीं बल्कि मीडिया को संसोधन अधिनियम 2019 को कुछ समझने का मौका मिलता, इससे पहले ही प्रेसवार्ता भी आयुक्त ने देविप्रा के एक छोटे से कमरे में कोरोना काल में लेकर प्रचारित व प्रसारित भी मीडिया से ही करवा दी गई। इस नई स्कीम पर काम चालू हुआ और एक बड़ी डील इंदौर के भाजपा नेता से हुई उसने बिलावली स्थित सर्वे नंबर 203 कजा़त की भूमि खरीदी और डिजाइनर से सेटिंग कर रेसो डील की तैयारी हुईं, हालांकि इस भूमि पर पंडित अजय शर्मा की आपत्ति पूर्व से ही लगी हुई थी। फिर इस भूमि पर देविप्रा द्वारा सुप्रीम कोर्ट में भी पीआईएल विचाराधीन है ।
इसके बावजूद भी रेसो डील की कहानी मुस्लिम समाज को मालूम हुई तो वक्फ बोर्ड ने जमीन बेचने पर आपत्ति दर्ज कराई और स्वयं भू, अवैधानिक तरीके से बने काजी सहित देविप्रा, जिला प्रशासन, तहसीलदार, एसडीएम, नजूल आदि कई विभागों के भी विरुद्ध ट्रिब्युनल में प्रकरण विचाराधीन है। जानकारी अनुसार कजा़त भूमि खरीददार इंदोरी भाजपा नेता भी शायद कुछ ही दिनों बाद विष्णूलोक वासी हो गये।
हालांकि म.प्र.नगर तथा ग्राम निवेश (संसोधन अधिनियम 2019) को जिम्मेदारों द्वारा ऐसा तैयार किया है कि केबिनेट मंत्री दर्जा प्राप्त नवागत देविप्रा अध्यक्ष राजेश यादव जो कि संघ विचारधारा से प्रभावित ईमानदार दमदार अध्यक्ष हैं, को भी शायद जल्द ही समझ में नहीं आ सकता। जबकि पदभार ग्रहण के बाद पहली बार पूर्व में हुऐ नीलामी टेंडर रजिस्ट्री आदि निरस्त कर नये सिरे से नीलामी करवा कर देविप्रा को लगभग दो करोड़ से अधिक का मुनाफा करवाया, जो अध्यक्ष की साफ ईमानदार मंशा और कार्य शैली को दर्शाता है। इसी कारण देवास की जनता को काफी उम्मीदें हैं विश्वास है, कि पूर्व कि भांति छलावा तो शायद नवागत देविप्रा अध्यक्ष राजेश यादव नहीं होने देंगे। अब नवागत अध्यक्ष यादव को गंभीरता से विचार करना होगा कि शासन कि मंशा अनुसार जमीन मालिक किसानों को फायदा दें, पार्टनरशिप दें या दलालों द्वारा जुगाड से किसानों की भूमि खरीदी और तुरंत ले-देकर देविप्रा से रेसो डील एग्रीमेंट कर नेता व दलालों को फायदा दें पार्टनरशिप दें। देविप्रा नवागत अध्यक्ष के लिए ये बहुत ही गंभीर चिंतनीय विषय है।
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हाल ही में ज़मीन के कुछ दलालों से प्राप्त जानकारी अनुसार देवास शहर में स्थित सतपुड़ा स्कूल के पास देविप्रा स्कीम की कीमती सात बीघा जमीन जिसका एग्रीमेंट 93 लाख रुपए प्रति बीघा के हिसाब से जमीन विनोद शर्मा के नाम से ली गयी है । जब कि इस जमीन कि अनुमानित कीमत ढेड़ करोड़ रुपये प्रति बीघा बाजार भाव है। ये सात बीघा भूमि भाजपा के किसी जुगलबंदी वाले दो स्वंय भू नेताओं ने पर्दे के पीछे पाटर्नरशिप में खरीदी है। प्राप्त जानकारी अनुसार यही जुगलबंदी वाले स्वयं भू नेताओं ने इसके पूर्व भी मक्सी रोड पर राजपूत धर्मशाला के पास एक कालोनी काट चुके हैं। ये सतपुड़ा के पास जमीन देविप्रा स्कीम से मुक्त कराने की गारंटी और देविप्रा से रेसो डील एग्रीमेंट पर खरीदी है।
हालांकि देविप्रा से प्राप्त जानकारी अनुसार आवास नगर क्षेत्र मे एक निजी स्कूल की भूमि भी पूर्व में स्कीम में छोड पकड वाले खेल में ही ऐसे निकली थी, जो जैन मित्र के द्वारा समिति गठित कर स्कूल की बेस कीमती करोड़ों की भूमि को कौड़ियों के भाव में लेकर कब्जा कर बैठे हैं। हालांकि इस समिति में गठन के समय के सारे सदस्य बदल दिये गये और परिवार के सदस्यों को समिति में प्राथमिकता दी गयी। जो जग जाहिर है। इतना ही नहीं बल्कि विद्युत गृह निर्माण सहकारी संस्था की प्रायवेट कालोनी में व्यक्ति गत आठ दस प्लाट लेकर देविप्रा से विकास कार्य करवाया गया जो विधान सभा में पूर्व मंत्री दीपक जोशी द्वारा उठाया गया, साथ ही इस मामले की लोकायुक्त में भी शिकायत हुई थी। जो राजनीतिक दबाव व लेन-देन कर दबा रखा है।
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जानकारी अनुसार शहर के जो हर उस क्षेत्र में जो स्कीम में है या स्कीम के नाम पर रजिस्टर में इंट्री किए सर्वे नंबर की जितनी भी जमीन बेची जा रही है, वो सभी नये जमीन मालिकों के साथ देविप्रा के रेसो डील के तहत एग्रीमेंट हुए है और हो रहें हैं, वो सब जमीन खरीदने के बाद में नये मालिकों द्वारा देविप्रा से रेसो डील करना राज नेताओं की मिलीभगत को खुला इशारा करता है, जो डिजाइनर व प्रोजेक्टर द्वारा बनाई गई नई स्कीम है।
जब कि खरीदने के पूर्व ज़मीन मालिक किसानों से संसोधन अधिनियम 2019 के अनुसार बाजार प्रायवेट ठेकेदार के साथ साठ चालीस के रेसो डील और देविप्रा में डेवलप पलाट के पचास-पचास प्रतिशत के रेसो डील पर एग्रीमेंट होना तय है , जो पूर्व में आयुक्त विशाल सिंह चौहान और कलेक्टर चंद्रमोली शुक्ला ने इंदौर के भाजपा नेता के साथ की थी जो शायद अभी ट्रिब्युनल में प्रकरण विचाराधीन है। हालांकि बाद में वो नेता शायद दिवंगत भी हो गए।
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अब देखना यह होगा कि क्या देविप्रा के नवागत संघ विचारधारा से प्रभावित ईमानदार दमदार अध्यक्ष राजेश यादव स्कीम कि तह तक जाएंगे क्या? नवागत अध्यक्ष स्कीम कि इस बेस कीमती जमीन का रेसो डील एग्रीमेंट निरस्त कर पूर्व किसान को हक देंगे ? या पूर्व अध्यक्षों और सी ईओ की भांति भूमि स्कीम मुक्त करेंगे? या डिजाइनर व प्रोजेक्टर के द्वारा बनाए गए नए डिजाइन कि भांति वर्तमान में हुऐ नए रेसो डील पर ही आगे का काम चलेगा? या जमीन को स्कीम में ही शामिल रखकर नये सिरे से नया प्रोजेक्ट तैयार कर इतिहास रचेंगे? जनता के ये सारे सवाल अभी समय के गर्भ में है। हालांकि समय चुनाव का है। रिजल्ट क्या होगा ये भी समय के गर्भ में है। परंतु समय-सीमा शायद कम है और कार्य बहुत हैं देखो समय को क्या मंजूर है?
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