प्राईम हॉस्पिटल एण्ड रिसर्च सेंटर में कबीर जयंती हर्षोउल्लास के साथ मनाई गई !

  •   हम अब तक जान ही नहीं पाए कि कबीर को पढ़ने से ज्यादा समझने की आवश्यकता है- डॉ. पवन कुमार चिल्लौरिया !



देवास - 14वीं-15वीं शताब्दी के महान समाज सुधारक संत कबीर जिनका सम्पूर्ण जीवन समाज उत्थान और धर्मो में व्याप्त कुरीतियों, कर्मकाण्ड, अंधविश्वास एवं सामाजिक बुराईयों की कड़ी निन्दा एवं आलोचना में बीता। ऐसे संत के विचार आज के सामाजिक जीवन में हर व्यक्ति के लिए अत्यंत आवश्यक है। इन्ही उद्देश्य को लेकर कि संत कबीर वास्तविक रूप से जो चाहते थे वो पूर्ण हो, देवास के प्राईम हॉस्पिटल एण्ड रिसर्च सेंटर में उनकी जयंती के अवसर पर विचार गोष्ठी का आयोजन रखा गया। कार्यक्रम की शुरूआत मुख्य अतिथियों द्वारा कबीर साहब के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन के साथ हुई। 


कार्यक्रम के आयोजक डॉ. पवन कुमार चिल्लौरिया ने विचार गोष्ठी में विचार रखते हुए कहा कि समाज को, हम सबकों कबीर के उद्देश्य नहीं पता है, कबीर ने क्या किया इसे समझना जरूरी है, कबीर को केवल भक्त समझना गलत होगा, वास्तविक रूप से कबीर साहब समाज सुधारक थे जो बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर के भी गुरू थे। कबीर जब 15वी शताब्दी में प्रकट हुए उस समय समाज की स्थिति बहुत दयनीय थी, समाज में भेदभाव, पाखण्ड, कर्मकाण्ड, छुआछुत, उंच-नीच, धर्म के नाम पर आडम्बर को दूर करने के लिए तुफानी अभियान चलाया कबीर चाहते थे कि समाज में मानव निर्मित उंच-नीच, भेदभाव समाप्त हो तथा मानवता का पौधा हर मानव के मन में फले-फूले।


यहां यह भी बताना जरूरी है कि अम्बेडकर साहब ने समाज के लिए जो किया वो कबीर साहब 15वीं सदी में प्रारंभ कर चुके थे, जिसका मुर्तरूप सविंधान के रूप में बाबा साहब ने किया।
कबीर के अनेको रूप है, वे हर इंसान के पथ प्रदर्शक है इसीलिए कबीर साहब को परमेश्वर की उपाधि भी दी गई है, उनके अनुयायियों के लिए कबीर साहब भगवान स्वरूप है।
कबीर के अनैकों रूप है, जो जैसा उन्हे माने, मेरे लिए तो वो सामाज सुधाराक है। कबीर साहब नें जीवन भी जाति एवं धर्म के नाम पर जो भेदभाव था, उसे सामाप्त करने के लिए कार्य किया निम्न जातियों के उत्थान के लिए कार्य किया। आज जब हम वर्तमान परिपेक्ष्य में बात करें, तो कबीर साहब का अतुल्य योगदान समाज में देखने को मिलता है। कबीर की शिक्षा हर प्राणी के लिए उपयोगी है।


कबीर साहब ने महिला उत्थान के लिए कार्य किए जन-जन को मानवता का पाठ पढ़ाया।  भले ही कबीर दास जी ने अक्षर ज्ञान प्राप्त नहीं किया ,वह निरक्षर थे, अनपढ़ थे पर उनकी शिक्षाएं अक्षर ज्ञान से भी ऊपर तत्व ज्ञान प्रदान करती है तथा सही जीवन जीने की राह बताती है। संत कबीर और उनके विचार हमारी पाठ्य पुस्तको तक ही सीमित रहते हैं। परीक्षा खत्म, उनकी सीख भी खत्म। और बाद के जीवन में हम उनका नाम कबीर जयंती पर लेते हैं या कबीर पन्थ के रूप में याद रखते हैं ।उनकी शिक्षाओं को आचरण में उतारने का प्रयास बहुत कम होते है । हम अब तक जान ही नहीं पाए कि कबीर को पढ़ने से ज्यादा समझने की आवश्यकता है।


महात्मा कबीर " मसि कागद" छुवे बगैर ही वह सब कुछ कह गए जो कृष्ण ने कहा, नानक ने कहा,जीसस ने कहा और पैगंबर ने कहा |उन्होंने अपनी बात को, अपनी शिक्षा को साबित करने के लिए किसी शास्त्र, पुराण की मदद नहीं ली | ना किसी शास्त्र विशेष पर उनका भरोसा रहा और ना ही जीवन भर स्वयं को किसी शास्त्र में बांदा | वेदों और शास्त्रों का सहारा ना लेकर व्यावहारिक जीवन के उदाहरणों द्वारा उन्होंने आत्मा और परमात्मा के मिलन को स्पष्ट कर दिया !

विशेष अतिथि पूर्व न्यायाधिश आर.पी. सोलंकी ने कहा कि कबीर साहब के बारे में जितना बोला जाए उतना कम है, उनक सामाज उत्थान के कार्यो की कोई सीमा नहीं है।



विशेष अतिथि प्रो. बी.एस. मालवीय ने कहा कि जब कबीर के ज्ञान की बात आप करने लगोगे तो विश्व का सारा ज्ञान बोना साबित होगा जाएगा। कबीर का ज्ञान अथाह है। वे जगत गुरू है, जिन्होने अपनी हर सांस में दोहे, साखी, शबद, उलटमासी के द्वारा ज्ञान की बात कहीं। पूर्व प्रार्चाय सी.एल. परमार ने कहा कि हमें कबीर साहब के दोहो का चिंतन करना चाहिए। सामाजिक कार्यकर्ता सहज सरकार ने कहा कि पूजने से ज्यादा जरूरी है भाव, आपके मन में किसी के प्रति अच्छे भाव जब तक उत्पन्न नहीं होगें तब तक आप अपने सामाज का, अपने देश का, स्वयं का विकास करने में असमर्थ होगें। एफ.बी. मानेकर ने कबीर साहब के जन्म के विषय में चर्चा की। अतिथि नन्द किशोर पोरवाल ने कहा कि कबीर साहब ने एक साखी में कहा कि पानी से पेदा नही, सांसे नही शरीर। और अन्न आहार करता नहीं ताका नाम कबीर, इस साखी में कबीर ने स्वयं का परिचय दिया है।


कार्यक्रम में एस.एम. त्रिवेदी, राम प्रसाद गोलावटिया, रमेश आनंद, भारत सिंह मालवीय ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम में मुख्यरूप से आशिष चौहान, विशाल चौहान, डॉ. गोपाल मालवीय, सीमा अडसुले, अंकित माहेश्वरी, ममता मालवीय, नितिन कचनारियां, मनोज पटेल, यश शुक्ला, अमित श्रीवास्तव, विपिन कुमावत, अजय मटवाना, हेमा मालवीय, निकेत और आमिर लोहार उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन मेहरबान सिंह ने किया। आभार प्रो. बी.एस. मालवीय ने माना। 





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