देवास जिले में आर्थिक आजादी की तरफ बढ़ते कदमों के साथ अलग-अलग क्षेत्रों में अपने निशान छोड रही है स्व सहायता समूह की महिलाएं !
देवास - प्रकृति को सहेजना संभालने के साथ संसाधनों से कमाई करने की यह अनूठी कहानी है। आर्थिक आजादी की तरफ बढ़ते कदमों के साथ स्व सहायता समूहू की महिलाएं जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में अपने निशान छोड़ रही हैं और देश समाज के लिए कुछ कर रही है। देवास जिले के गांव पानकुआं में पिछले 3 साल में बदलाव की हवाएं चली और नजारा कुछ ऐसा बदला की बंजर पहाड़ी पर अब घने जंगल हैं और ठंडी हवाएं गांव वालों को राहत दे रही है। बड़ी बात यह है कि पुंजापुरा पहाड़ी अब ''जंगल बैंक'' में साबित हो रही है। यहां कमाल कर दिखाया स्व सहायता समूह की महिलाओं ने। अब यहां के ग्रामवासी विशेषकर स्व सहायता समूह की महिलाएं इस ''जंगल बैंक'' को संवारने और बढ़ाने में दिन रात एक कर रही है। सिर्फ जंगल ही नहीं यहां बनती घास भी दोहरा फायदा करा रही है। इस घास से स्व सहायता समूह महिलाओं के पशुधन की दूध मात्रा बढ़ गई है। और चारे के लिए भी अब उन्हें दूर नहीं जाना पड़ता।
स्व सहायता समूह की महिलाओं ने अपने प्रयासों को आगे बढ़ाते हुए बांस के पेड़ लगाएं लगाना शुरू किए। अब जहां तक नजर जाती है वहां तक पास ही पास के घने पेड़ वाला जंगल नजर आता है। प्राकृतिक खूबसूरती से इस इलाके को नई पहचान मिल रही है। बांस के इस जंगल में स्व सहायता समूह की उम्मीदें भी बढ़ गई।
विकास महिला स्व सहायता समूह की अध्यक्ष किरण सोलंकी बताती है कि ''हमारे इंतजार के दिन खत्म हुए 03 साल की कड़ी मेहनत से बांस के ये पौधे अब बड़े होने लगे हैं। यहां हमारे समूह के लिए कमाई का जरिया बन जाएंगे। समूह की महिलाओं को अभी आठ हजार रूपये महीने मिलता है। कुछ ही दिनों में बांस की कटाई शुरू हो जाएगी। हमें इसका सीधा फायदा मिलेगा।‘’
वन विभाग की कोशिशों और सहयोग से ही पुंजापुरा तालाब के किनारे बांस के पौधे रोपे गए। डिप्टी रेंजर मूलचंद भार्गव कहते हैं कि ''यह खास तरह के पास वैसे नार्थ ईस्ट इलाके में पाए जाते हैं। यह नमी और ठंडे प्रदेशों में पनपते हैं। यह मालवा इलाके में नया प्रयोग है। वन समिति और स्व सहायता समूह की महिलाओं ने ताकत झोंकी और तीन साल में जंगल खड़ा कर दिया।''
विकास समूह की सदस्य रेखा तंवर कहती है कि ''मेरी जिंदगी तो मजदूरी और गरीबी में निकल रही थी। बंजर पहाड़ी पर जब पौधे लगाए, तो सोचा नहीं था कि यह जंगल जिंदगी को पटरी पर ला देंगे। मेरे मवेशी एक या डेढ़ लीटर से ज्यादा दूध नहीं दे रहे थे। जंगल में घास मिलने लगा। अब मवेशी 04 लीटर से ज्यादा दूध देने लगे, धंधे में फायदा हुआ तो गाय, भैंस और खरीद ली। बच्चे स्कूल जाने लगे।
इस जंगल की देख-रेख करने वाले जय लक्ष्मी समूह की सचिव कहती है- ''हमारे पास काम नहीं था। यह बंजर पहाड़ी पर जब बाँस लगाए तब भी भरोसा नहीं था। कि या हमारे सपनों का को हकीकत में बदल देगा। हमको अभी मुफ्त में घास मिल रही मवेशी तंदुरुस्त हो गए।
स्व सहायता समूह की अध्यक्ष अपना निगम बताती है कि ''मेरे मवेशी ही नहीं बल्कि समूह के सभी सदस्यों को यह फायदा हुआ। जब बांस काट के बिकेंगे तब हमारी कमाई और बढ़ जाएगी।'' इस इलाके में साढ़े बारह हजार से ज्यादा बांस के पेड़ लहलहा रहे हैं। रेंजर नाहर सिंह भूरिया कहते हैं कि ''यह जंगल खड़ा करना हमारे लिए चुनौती था। गांव की वन समिति के अलावा दो स्व-सहायता समूह की विधियों से यहां अनुबंध किया। अभी आठ हजार रूपये महीने दे रहे हैं।
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जिला पंचायत की परियोजना प्रबंधक शीला शुक्ला कहती है कि ''जिले के दो स्व सहायता समूह की 22 महिलाओं को सीधा लाभ मिला। ये बास कटाई और बेचने से बड़ी कमाई कर सकेगी अभी घास मुफ्त में मिल रही है। गरीबी चल रही महिलाओं और गरीब ग्रामीणों के जीवन स्तर सुधारने के लिए यह जंगल वरदान साबित हुआ। ''जिले के सहायक परियोजना प्रबंधक राम सिंह ने बताया 03 साल पहले 2022 में 25 हज़ार घास के पुले महिलाओं को मिले। जबकि 2022 तक 32 हजार पुलों को काटा। लगभग 20 हजार पुले विभाग के पास स्टॉक में है। यह 20 एकड़ जमीन पर जबरदस्त ग्रोथ ले रहे हैं।‘’
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