सद्गुरु के वैचारिक जल से स्नान करने पर ही शांति और संतोष प्राप्त किया जा सकता है- सद्गुरु मंगल नाम साहेब !



देवास। मन माया मरी नहीं, मर मर जाय शरीर, आशा तृष्णा ना मरी, मर- मर जाए शरीर। मन और माया होती ही नहीं है तो मरेगा क्या। लेकिन यह भाष होता है। अब जो भाव है उसे कैसे मारोगे। शरीर भाष होता है उठता बैठता है, खाता पीता है, यह शरीर मरता है। मन माया जो होती नहीं वह कैसे मरेगी। हम आशा तृष्णा खड़ी कर लेते है। यह हो जाएगा, वह बन जाएंगे, यह कर लेंगे, होता तो कुछ है नहीं तो मरेगा क्या।आशा तृष्णा तो अजर अमर है।आज एक बंगला बना लिया तो 100 बंगले और बनाने की आशा होती है।आशा और तृष्णा बढ़ती ही जाती है। यह सिर्फ संसारी लोगों की बात है। जो भक्त होते हैं वह आशा तृष्णा का जीवन नहीं जीते। वह तो अपने परमात्मा के मिलने के बाद स्वयं ही आनंदित रहते हैं। उनको दुनियादारी से क्या लेना देना। परमात्मा जिसको मिल गया उसकी चाह गई चिंता गई, मनवा भया बेपरवाह। और जिसको कुछ भी नहीं चाहिए वही सच है। जो ज्ञान, गरिमा, संतोष से भरा हुआ है, परिपूर्ण है। संसार की सारी अकड़ उसके अंदर गल चुकी है। वह क्या चाहेगा वह तो परमात्मा में विलीन हो गया। वह व्यक्त भी नहीं कर पाता की मिला क्या है। यह विचार सद्गुरु मंगल नाम साहेब ने रविवार को बालगढ़ में आयोजित चौका विधान, चौका आरती, गुरुवाणी पाठ के दौरान व्यक्त किए। उन्होंने आगे कहा कि मन और माया होती नहीं है।वह मानी हुई चीज है। नोटों की औकात क्या है तुमने बहुमत से उसे मान लिया तो वह सच है। बहुमत से बंधा हुआ, माना हुआ सच अलग है। रोटी वास्तविक सत्य है। पानी वास्तविक सत्य हैं। चाहे सोना चांदी हीरा जवाहरात के ढेर लगा दो प्यास नहीं मिटती। प्यास तो पानी पीने से ही मिटती है। कथा, वार्ताओं से भी प्यास नहीं मिटती है।थोड़ी देर के लिए धीरज दिला सकती हैं पर प्यास नहीं मिटती। गुरु के सिद्धांत और संवाद के वैचारिक जल से जब तक प्यास नहीं मिटती तब तक संसार का आपके पास कितना भी धन संपदा वैभव हो आपके अंदर संतोष शांति प्राप्त नहीं हो सकती सद्गुरु के संवाद से ही आपको वैचारिक जल शीतल जल की प्राप्ति होती है। जिससे आपकी आशा और तृष्णा समाप्त हो जाती है। संदूक और बंदूक से शांति प्राप्त नहीं हो सकती। शांति सद्गुरु के वैचारिक जल से स्नान करने एवं संवाद से  ही प्राप्त हो सकती हैं। इस अवसर पर महा प्रसादी का वितरण किया गया। जिसमें बड़ी संख्या में साध संगत ने प्रसाद ग्रहण की।


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