कार्ड के आधार में धोखाधड़ी हो सकती है, नाम के आधार में नहीं- सद्गुरु मंगल नाम साहेब !

नाम का आधार ही मुक्ति का मार्ग है, कार्ड का आधार नहीं - सद्गुरु मंगल नाम साहेब

देवास। नाम ही हमारा आधारा है। लेकिन तुमने संसार को चलाने के लिए कार्ड का आधार बना लिया। नाम अधारा और कार्ड आधारा में अंतर यह है कि तुमने कार्ड को आगे किया। कार्ड में कई तरह की धोखाधड़ी हो सकती हैं। नाम का आधार जो स्वांस ले रहा है, दे रहा है। वह हमारा नाम का आधार है। नाम के आधार पर कार्ड का आधार चल सकता है। कार्ड के आधार पर नाम का आधार नहीं चल सकता। इसलिए जो है सो लिखा ना जाए। लिखा सो है नहीं। आज जो दिख रहा है संसार में वह काल का भोजन है। जो चेतन्य पुरुष है स्वांस ओ हाजिर है। वह जो बोल रहा है वह चेतन्य है। जो बोल दिया वह जड़ है। अब जड़ पकड़कर हम खड़े रहेंगे तो जड़ तो मिटने वाली है। उसका पतन होने वाला है। और जो नाम का आधार हैं वह सदा चैतन्यमय है। चारों युगों में एक नाम। तुम हो एक अगोचर, सबके प्राण पति। परमात्मा सबके प्राणों का मालिक है, स्वामी है। उससे तुम क्या छुपा लोगे संसार की जितनी व्यवस्था की और हम जा रहे हैं धीरे-धीरे। पर एकदम जो परमात्मा ने निश्चित कर दिया है कि प्राण ही सबका आधार है। प्राण को रखने के लिए प्राण पिंड को तैयार करते हैं। प्राण हमारा पुरुष है और पिंड उसका मंदिर है। और इसलिए मूर्ति पूजा की जाती है। यह विचार सद्गुरु मंगल नाम साहेब ने नई आबादी में आयोजित चौका विधान, चौका आरती, गुरु वाणी पाठ के दौरान व्यक्ति किए। उन्होंने आगे कहा कि जो सूरत बनी है प्रकाश है। वह परमात्मा की ही छाया है। जो अरूप है उसमें छाया है ही नहीं। जो परम प्रकाश दिन और रात्रि, दिन और रात प्रकाश से भरा हुआ है। बीच-बीच में जैसे समुद्र में लहरें उठती हैं। लहर दिखती हैं, समुद्र थोड़ी दिखता है। वैसे ही जीव नहीं दिख रहा है। जीव विदेही है।देह सदेही है जो दिख रही है। उसके कितने रूपांतरण 84 लाख रूपांतरण है देह के। जलचर, थलचर, नभचर अलग-अलग पानी में रहने वाले शरीर, आकाश में उड़ने वाले पंछी और थलचर जमीन पर चलने वाले और प्राण आधार जो केवल वैचारिक शरीर लेकर चल रहे हैं उन्हें हम भूत कहते हैं जिन्न कहते हैं। चारों युगों से मुक्ति का मार्ग सिर्फ नाम का ही आधार है। इस अवसर पर साध संगत को महाप्रसादी का वितरण भी किया गया।




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