मध्यप्रदेश विधानसभा 2023 में बीजेपी की चुनावी रणनीति !

 

मध्यप्रदेश में लगातार सत्ता में रहने के बाद बीजेपी को अब जनता की नाराज़गी झेलनी पड़ रही है।  बढ़ती महंगाई और विकास के दावों की हकीकत से जनता खुश नहीं है। बीजेपी की सबसे बड़ी चुनौती वह वर्ग है जो हमेशा से पार्टी के साथ हुआ करता था यानी व्यापारी वर्ग। क्योंकि व्यापारी वर्ग बीजेपी से नाखुश है। विधानसभा चुनाव में मोदी मैजिक भी काम नहीं करने वाला है।  अब ऐसे में सवाल यह है कि आखिर बीजेपी क्या करने वाली है जिसके साथ वो सत्ता में पहुंच सकेगी।
राजनीतिक रणनीतिकार अतुल मलिकराम ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी एक ऐसा संगठन है जहाँ अनुशासन को शक्ति कहा जाता है। अभी बीजेपी को पार्टी में अनुशासन और एकता दोनों पर काम करना है।  कांग्रेस की हार की एक वजह हमेशा गुटबाज़ी रही है जिससे अब बीजेपी अछूती नहीं है।  सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के विलय के बाद से भले ही बीजेपी ने सत्ता में वापसी की हो लेकिन अंर्तकलह तो झेल ही रही है। इन सब से निपटने के लिए संगठन ने ज़मीनी कार्यकर्ताओं को एक्टिव किया है और बूथ स्तर पर तैयारियां शुरू भी कर दी है। चुनाव के नज़दीक होने के चलते शिवराज सिंह चौहान ने अब बहनों के लिए भी योजना की घोषणा की है।  शिवराज जानते है उनका सिंहासन खतरे में है और वो किसी भी तरह जनता के पसंदीदा बने रहना चाहते हैं।  हालाँकि पार्टी का नजरिया भी साफ़ है कि इस चुनाव में ना सिर्फ उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा बदलना है बल्कि पार्टी की नीतियां भी बदलनी हैं।
बीजेपी ने अपनी नीतियां बदलने की शुरुआत 2020 से ही कर दी थी।  भारतीय जनता पार्टी ने पिछले कुछ सालों से यह साबित करने की कोशिश की है कि वह आदिवासियों की हितैषी है और इस बार चुनाव में बीजेपी का हुकुम का इक्का भी यही है।  बीजेपी जानती है हर वर्ग को अपने करीब लेकर चुनाव नहीं जीता जा सकता तो अब बीजेपी का पूरा फोकस आदिवासी, दलित और OBC पर ही है।
बीजेपी के पिछले कुछ अहम् कार्यों पर नज़र डालेंगे तो साफ़ नज़र आता है कि बीजेपी अब यही कार्ड खेलने जा रही है। चाहे वो टंट्या भील की याद दिलाकर उनकी प्रतिमा बनवाना हो, उनका बलिदान दिवस मनाना हो या सत्ता में इस वर्ग विशेष को बड़ा पद देना हो।  कहीं न कहीं बीजेपी पिछले 2  सालों से गरीब और आदिवासी तबके के बीच अपनी जगह बनाने में जुटी हुई है।    
मध्यप्रदेश में दलित वर्ग की आबादी 40 प्रतिशत है और इस कार्ड को खेलने का मतलब है, बीजेपी की जीत पक्की। क्योंकि उसके बाद बीजेपी के लिए कलह और मुख्यमंत्री का चेहरा जैसी मुसीबतें थोड़ी कम हो जाएँगी। महंगाई रोज़गार और विकास जैसे मुद्दों पर अब बीजेपी घिर चुकी है ऐसे में उसे अचूक फॉर्मूले की ज़रूरत थी। गुजरात में बीजेपी की चुनावी जीत से यह तो साफ़ हो गया कि एंटी इंकम्बेंसी से उबरा जा सकता है।  बीजेपी मध्यप्रदेश में कमज़ोर स्थिति में है और अब अपनी स्थिति को मज़बूत करने के लिए उसने ऐसा वर्ग चुना है जो अंधभक्त होकर अपनी वफादारी निभाता है।  सालों तक  इसी वर्ग के दम पर कांग्रेस ने देश में अपनी सरकार बनाई है।
चुनावी मौसम में यही वर्ग है जिसकी सबसे ज्यादा बात होती है।  दलित, आदिवासी और पिछड़ा समाज। भारतीय जनता पार्टी ने इस समाज से कनेक्शन जोड़ने का काम पहले ही शुरू कर दिया था। 2018 की हार ने पार्टी को समझा दिया था कि उसे अब ऐसे वोटर्स चाहिए जिन्हें चेहरों से नहीं बल्कि सिर्फ चुनावी चिन्ह से फर्क पड़े।  बीजेपी ने मध्यप्रदेश में अपनी छवि पिछड़ा वर्ग हितैषी बना ली है और अब इसी कार्ड के साथ वो चुनाव में उतर  रही है। हालाँकि बीजेपी को भूलना नहीं चाहिए कि सत्ता में आने के लिए और बने रहने के लिए उसे अन्य चुनौतियों से निपटना भी ज़रूरी है।



Comments

Popular posts from this blog

हाईवे पर होता रहा मौत का ख़तरनाक तांडव, दरिंदों ने कार से बांधकर युवक को घसीटा

7 हजार की रिश्वत लेते रंगे हाथ धराये तहसीलदार, आवेदक से नामांतरण के लिये मांग रहे थे रिश्वत ! Tehsildar caught red handed taking bribe of Rs 7 thousand, was demanding bribe from the applicant for name transfer!

फ्रीज में मिली महिला की लाश संबंधी सनसनीख़ेज़ अंधे क़त्ल का 10 घंटे में पर्दाफ़ाश, 5 साल लिव इन में रहने के बाद घोंट दिया पिंकी का गला ! 10 माह से रखा था फ्रिज में महिला का शव !