40 वर्षों से यहां होती हैं मात्र 5 दिनों की दुर्गा पूजा ? सिंदुर की होली की अनूठी परंपरा ... Navratri Special ... Documentary
भारत सागर न्यूज, देवास। नवरात्रि के नाम में ही नौ दिनों का उल्लेख होता है लेकिन आज हम आपको नवरात्रि की अनूठी परंपराओं से रुबरु करवाने जा रहे हैं और आश्चर्य की बात तो यह है कि यहां नवरात्रि मात्र 5 दिनों की ही मनाई जाती है। यही नहीं यहां माताजी की स्थापना प्रथमा को न होकर षष्ठी को होती है और समापन पर समाज की महिलाओं द्वारा सिंदुर खेला नामक परंपरा के द्वारा अनूठी होली का आयोजन भी किया जाता हैं।
दोस्तों स्टोरी को पूरा देखें और जानें भारत में मनाई जाने वाली अनूठी परंपराओं के बारें में... साथ ही चैनल को सब्स्क्राइब जरुर करें और देश के लोगों तक इन परंपराओं को पंहुचाने के लिए इस स्टोरी को शेयर करें ....
भारत सागर न्यूज की खास स्टोरी में देखिए क्या हैं यहां की अनोखी परंपराएं ....
जैसा कि आप जानते ही हैं देवास का नाम दो देवियों के वास से जाना जाता है। यहीं शहर की बंगाली कालोनी में बंगाली समाज के द्वारा माताजी की पूजा बंगाली समाज की परंपराओं के निर्वहन से होती हैं। यहां माताजी की स्थापना षष्ठी को की जाती है और बासी दशहरे को परंपराओं के साथ माता को विदाई दी जाती है।
बंगाली समाज के लोगों द्वारा स्थापना के दिन से ही अलग-अलग परंपराओं के अनुसार पूजा पाठ किया जाता है। नारियल की सूखी नरेटी जिसे बंगाली समाज सोबा कहते हैं, को खप्परों में रखने के बाद आरती करने की परंपरा नवरात्रि पर्व की आस्था को और भी बढ़ा देती है।
बंगाली समाजजनों के अनुसार बंगाली समाज शुरु से ही षष्ठी को माताजी की पूजा प्रारंभ करते हैं। उनका कहना है कि नवरात्रि में नवदुर्गा का पूजन होता है और हम जो पूजा करते हैं वह दुर्गा पूजा होती है इसिलिए पूजन षष्ठी से शुरु होकर बासी दशहरे पर समाप्त होता है।
बंगाली कालोनी में माताजी की स्थापना का यह 40 वां वर्ष है। श्री श्री शारदीय दुर्गा पूजा उत्सव समिति द्वारा सन् 1982 से बंगाली समाज के समाजजन यहां दुर्गा स्थापना करते आ रहे हैं। यहां प्रतिमा के रुप में मॉ दुर्गा को स्थापित किया जाता है साथ ही गणेशजी, कार्तिकेयजी, सरस्वती जी, लक्ष्मीजी की स्थापना कर माता के परिवार की पूजा भी की जाती है। रोजाना आरती का समागम देखने को ही बनता है। यहां आरती की पंरपरा का अनूठा अंदाज भी भक्तों को आकर्षित करता हैं क्योंकि आरती में नारियल की सूखी हुई नरेटी को खप्पर में रखकर धूप से मॉं की आरती की जाती है और जिस भक्ति से यह आरती की जाती है वह आप स्वयं ही देख लें .....
इसके पहले प्रातः में पुष्पांजली को भी समाज की परंपराओं में श्रेष्ठ माना गया है। समाजजनों के द्वारा अपनी श्रध्दा से दिये गये फलों और अन्न द्वारा माता को भोग लगाया जाता है इसके बाद इसी को प्रसाद के रुप में भक्तों को वितरित किया जाता है।
दुर्गा पूजा की परंपराओं में भंडारे का आयोजन बंगाली समाज द्वारा दो दिनों तक किया जाता है। भंडारें में भी समाजजनों के द्वारा समाज की पंरपराओं को प्राथमिक रखा जाता है। दुर्गापूजा के इस पर्व के दौरान महाष्टमी और महानवमीं को भंडारे का आयोजन किया जाता है। भंडारे में दाल-चावल से बनी खिचड़ी और खीर को महत्ता दी गई है। इसके पूर्व रीति रिवाजों के साथ सभी समाजजनों के द्वारा हवन कर यज्ञ में आहुति दी जाती है और विश्व मंगल की कामनाओं के जयकारे लगाये जाते हैं।
अंतिम दिन अर्थात् माता की विदाई के पूर्व समाज की महिलाओं के द्वारा बंगाली परिवेश में सिंदुर खेला परंपरा निभाई जाती है। समाज की महिलाएं इस पंरपरा को निभाने के लिए पूर्व से ही तैयारी करती है। ऐसा माना जाता है कि माता जी की विदाई के दौरान सिंदुर की होली की तरह मनाई जाने वाली यह परंपरा से उनका सिंदुर हमेशा बना रहता हैं और वे यह सिंदुर आपस में अन्य महिलाओं को भी लगाती हैं ताकि विवाहित महिलाओं का सुहाग बना रहे और परिवार में शांति रहें। इसके बाद माताजी की विदाई की जाती है। विदाई में भी एक अलग परंपरा समाज के लोगों द्वारा निभाई जाती है। समाज सदस्यों ने बताया कि वैसे तो बासी दशहरे पर ही मूर्ति का विसर्जन किया जाता है, लेकिन जब भी इस तिथि पर शनिवार या मंगलवार आता है तो इसके अगले दिन मूर्ति विसर्जन की परंपरा निभाई जाती है।
विदाई के 4 दिनों के बाद समाजजनों के द्वारा शरद पूर्णिमा के दिन मॉ लक्ष्मी की पूजा की जाती है वहीं दीपावली पर रात्रि 12 बजे के बाद मॉ कालिका की पूजा की जाती हैं ।
तो दोस्तों बंगाली समाज द्वारा मनाई जाने वाली पंरपराओं की जानकारी और माता शक्ति की आराधना के पर्व की अनूठी परंपरा आपको कैसी लगी ? परंपराओं को आगे बढ़ाने के लिए वीडियो को शेयर करें और चैनल को सब्स्क्राइब करना न भूलें....
जय माता दी ....
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