Shame Dewas ! गौशाला में मेरी जान को खतरा है... नगर निगम की गौशाला, गौसेवा या गौरखधंधा! गौशाला बन गई कतलगाह ...

  •  देवास में डिजाइनर , प्रोजेक्टर और संविदा स्वास्थ्य अधिकारी बने गौ हत्यारे।
  • नगर निगम की गौशाला, गौसेवा या गौरखधंधा!गौशाला बन गई कतलगाह।
  • शंकरगढ गौशाला में हो रही गायों की मौत, गायों के शव नोच रहे श्वान(कुत्ते)!
  • पशु अधिकार कार्यकर्ता ने की नगर निगम एवं गौशाला संचालक मंडल पर एफआयआर की मांग



देवास/पंडित अजय शर्मा/-। जहां एक तरफ देश के प्रधान सेवक से लेकर प्रदेश के मुखिया तक गौ सेवकों से लेकर कई संगठनों तक गोपालन व गौसुरक्षा को लेकर दावे वादे और घोषणा की है !बावजूद इसके भी देवास के स्थानीय शासन प्रशासन गौशालाओं एवं गौ सुरक्षा पर अपना ध्यान आकर्षित ही नहीं करना चाहता ,जबकि कई गौशालाओं में बड़ी तादाद में गौ हत्याओं का मुद्दा जागरूक नागरिकों एवं समाचार पत्रों और सोशल मीडिया के द्वारा प्रकाशित व प्रसारित हो चुका है, फिर भी शासन-प्रशासन की इस घौर लापरवाही से इनकी मंशा पर कई गंभीर सवाल खड़े होते हैं? इसी तरह हाल ही  में देवास स्थित शंकरगढ गौशाला में अव्यवस्था के चलते गायों की हालत खराब है, तथा वे काल के गाल में समा रही है, और गायों के शवों को श्वान (कुत्ते) नोंच रहे है, लेकिन इस ओर जवाबदारो का कोई ध्यान नहीं है!

            देवास की शंकरगढ़ की गौशाला वर्षों पूर्व से संचालित है। विक्रम कुमावत ने गौसेवा के लिए अपनी निजी भूमि विक्रय कर इसका पंजीयन कराया था ,और तब से लेकर पिछले वर्ष तक गौशाला संचालित रही, सैकड़ों गायों की सेवा इस गौशाला में की जा रही थी। पिछले वर्ष इन गायों के शासकीय चरागाह शंकरगढ़ पहाड़ी क्षेत्र पर प्रशासन ने करोड़ों की डिजाइन डाल कर  प्रोजेक्ट शुरू किया। पहले तो खनन माफियाओं द्वारा पहाड़ी की अवैध खुदाई करवाई गई जिससे पहाड़ी से जल का बहाव गौशाला में होने लगा, अधिक वर्षा के कारण गौशाला में ज्यादा जल भराव से दुर्घटनाग्रस्त गायों की मृत्यु हुई, और प्रशासन ने गौशाला का पंजीयन निरस्त कर दिया। 400 से ज्यादा गायें होने के कारण जिलाधीश  ने संचालक को अपने स्तर से गायों की चारे पानी की व्यवस्था करने को कहा जिस पर संचालक ने उधारी में रोजाना चारे की व्यवस्था की।

                     सात माह पूर्व नगर निगम ने इसका संचालन अपने हाथ में लिया और यहां पर चारे से लेकर खाद और गोबर तक में कमीशन बाजी शुरू हो गई। एक दो हफ्ते में नाम मात्र का चारा भूसा डाल कर आयशर का बिल बनवाया गया और गौमाता को भूखा मरने के लिए छोड़ दिया गया। नगर निगम के संविदा नियुक्ति पर पदस्थ रामसिंह केलकर और उनके अधीनस्थ भूषण पवार के हाथ में गौशाला की बागडोर आ गई ,दोनों ही अधिकारी कर्मचारी गुरु चेले होकर अनियमितता और भ्रष्टाचार के मास्टरमाइंड कहे जाते हैं इतना ही नहीं केलकर को तो निगम में भ्रष्टाचार का पितृपुरुष भी कहते हैं ,भ्रष्टाचार के ईसी पितृपुरुष केलकर को डिजाइनर निगमायुक्त विशाल सिंह चौहान और प्रोजेक्टर निगम प्रशासक चंद्रमौली शुक्ला की असीम कृपा से सेवानिवृत्ति के पश्चात भी संविदा पर रखकर पूरे पावर स्वास्थ्य विभाग के दिए गए हैं ,जोकी डिजाइनर और प्रोजेक्टर की नीति एवं नियति तथा मंशा पर कई सवालिया निशान खड़े करती है?

                  गौशाला के पूर्व संचालक से प्राप्त जानकारी अनुसार गौशाला में 400 की संख्या में यहां पर गायें पहले से थी, और प्रतिदिन 25 से 40 गाय पकड़ कर लाई जाती थी, लेकिन यहां पर रोज 10 गाय मरने लगी जिनके चमड़े और हड्डियों के लिए इनका सौदा चर्मकारों से करके इनके शवों को चर्मकारों के सुपुर्द किया जाने लगा।गायों के मरने की कोई सूचना वरिष्ट अधिकारियों को न देकर बिना पोस्टमार्टम के शवों का निस्तारण प्रतिदिन का नियम बन गया ,जिसके कारण यह गौशाला   गाय के चमड़े की मंडी बन गई। मामला तब और बिगड़ा जब यहां पर गायों के शवों को कुत्तों को ही खाने के लिए छोड़ दिया गया। एक ही समय में 5 से ज्यादा गायें मृत पड़ी रही और उनके शवों को कुत्ते नोचकर खाते नजर आए !और किसी ने वीडियो को सोशल मीडिया में अपलोड किया और पीपुल फॉर एनिमल के समक्ष ये बात पहुंची तो पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ( पशु अधिकार कार्यकर्ता साधना प्रजापति,रूपा पटवर्धन,राघवेंद्र सिंह बुंदेला,अनिरुद्ध  गुप्ता )ने इस गौशाला में हस्तक्षेप किया।

            

              पशु अधिकार कार्यकर्ता रूपा पटवर्धन के अनुसार यहां पर एक बाड़े में बिना छत के 200 से ज्यादा गायों को रोक कर रखा जा रहा था। खाने के लिए जो भूसा दिया जा रहा था वो भी फफूंद लगा हुआ था ,और कई गायों को कुपोषित भी पाया गया क्यूंकि उनके लिए कोई पौष्टिक आहार नहीं था।पीने के पानी की टंकी में सफाई के अभाव में काई लग चुकी थी। तपती धूप और बारिश में गाएं मर रही थी। पशु अधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा लगातार गौशाला में हस्तक्षेप के बाद 7 माह से जारी शेड का अधूरा निर्माण एक दिन में करवा दिया गया वह भी मात्र 50 गायों के लिए ही पूरी तरह पर्याप्त नहीं है!

इतना ही नहीं पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने देवास के शासन और प्रशासन के जिम्मेदारों से मांग की है कि गायों के चराने के स्थान शंकरगढ़ के पहाड़ पर उनके चरने की व्यवस्था होना चाहिए!उनके लिए भूसे, हरे चारे और पौष्टिक आहार की व्यवस्था होना चाहिए!उनके लिए गायों के मान से शेड की व्यवस्था होना चाहिए!बीमार गायों के लिए अलग से शेड की व्यवस्था होना चाहिए!गायों के मरने पर उनके शवों का पोस्टमार्टम अनिवार्य रूप से कराना चाहिए!गायों के मरने पर उनका अंतिम संस्कार धार्मिक रीति रिवाज से करवाना चाहिए।

 गौशाला में मेरी जान को खतरा है...

           गौशाला में गायों की दयनीय दशा को जवाबदारों एवं समाज के बीच दर्शाने के लिये मृत एवं मरनासन्न गायों के शरीर पर पोस्टर्स भी चस्पा किये। जिन पर लिखा हुआ है। मुझे इंसाफ चाहिये, गौशाला में मेरी जान को खतरा है। हिन्दू धर्म की मान्यताओ के अनुरूप तमाम देवी, देवताओं को अपने शरीर में वास देने वाली, अंग अंग में अमृततुल्य, स्वास्थ्य वर्धक, निरोगी ओषधिय पदार्थ प्रदान करने वाली,  पूज्यनीय गोपाल की गायों की दुर्दशा बेहद चिंतनीय है। गौरतलब है कि गोपालक गायो का दुध दोहन कर उन्हे मरने के लिये बाजारो, सड़को पर आवारा घुमने, भटकने, मरने के लिये छोड़ देते है, जिन्हे नगर निगम कर्मी पकड़कर गौशाला में छोड़ आते है, लेकिन वहां उनकी ठीक से देखरेख, लालन पालन नहीं किया जाता है। बीते वर्ष में भी गौशाला में गायो की मौत एवं दुर्दशा को,  चिंता एवं विरोध प्रकट करते हुए जवाबदारो के समक्ष रखा  है, लेकिन जवाबदारो द्वारा इस और ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

          अब देखना यह भी दिलचस्प होगा कि जहां हिंदुस्तान की संस्कृति अनुसार गाय को गौमाता कहा जाता है इतना ही नहीं गौ माता को राष्ट्रीय पशु का दर्जा दिलाने के लिए कई संगठन व गौसेवकों द्वारा मुद्दा उठाया जाता है यहां तक की  देश के प्रधान सेवक से लेकर प्रदेश के मुखिया तक गोपालन और गौ रक्षा की बातें करते हैं तो क्या देवास शंकरगढ़ गौशाला को स्थानीय शासन व प्रशासन गंभीरता से लेगा ? क्या निगम द्वारा संचालित गौशाला में हो रही गायों की मौत पर संविदा नियुक्त केलकर पर कार्यवाही होगी?

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