दोषी चिकित्सको पर होना थी कार्यवाही, पर राजनीतिक दबाव के चलते अस्पताल का रजिस्ट्रशन किया निरस्त !

आम नागरिक हो रहे परेशान ? अब होने वाली मौतों का जिम्मेदार कौन?




  • राजनीति का शिकार हुआ पुष्प कल्याण अस्पताल, मरीज हो रहे परेशान
  • प्रायवेट अस्पताल के लाइसेंस को निरस्त करने को बताया दुर्भाग्यपूर्ण
  • जहरीले जानवर के काटने पर उचित उपचार करने वाले एकमात्र अस्पताल को किया सील, अब गंभीर मरीज भटक भटक रहे इधर उधर


आष्टा/रायसिंह मालवीय ।  जिसे आप न्याय कह रहे असल में वह न्याय नही अन्याय है उन गरीब,दिहाड़ी लोगो के लिए जो सीहोर सहित अन्य दूर दूर के जििलों के गांव, खेत-खलियान में जहरीले जानवर (साँप, दिवड, गोयरा, नाग, नागिन) के काटने पर सिर्फ आष्टा के उस अस्पताल से आस करते थे जो एक घटिया राजनीति का शिकार हो गया !

दरअसल आष्टा के बहुचर्चित प्रायवेट पुष्प कल्याण हॉस्पिटल को सोमवार को आष्टा निवासी प्रसूता की मौत के मामले मे धरने पर बैठे परिजनों और आष्टा शहर के नागरिकों के ज्ञापनो में हॉस्पिटल का लाइसेंस निरस्त करने की मांगों को लेकर प्रशासन ने राजनीतिक दबाव के चलते पुष्प कल्याण हॉस्पिटल का पंजीयन निरस्त कर दिया।

जिसके बाद से सोशल मीडिया से लेकर नगर के चौक चौराहो पर नागरिकों में पुष्प कल्याण हॉस्पिटल का पंजीयन निरस्त करने को लेकर नाराजगी देखी जा रही है और लाइसेंस निरस्त करने पर लोगो की तीखी प्रतिक्रिया आ रही है और हर जगह से यह आवाज उठ रही है कि अब जहरीले जानवरो साँप, बिच्छू, दिवड, नाग, नागिन के काटने पर इलाज कहा होगा।

और अब तो आष्टा कांग्रेस के ब्लाक अध्यक्ष ने भी अपनी फेसबुक वॉल पर पुष्प कल्याण हॉस्पिटल का लाइसेंस निरस्त करना दुर्भाग्यपूर्ण बताया है और लिखा है कि पुष्प कल्याण हॉस्पिटल का पंजीयन निरस्त करना दुर्भाग्यपूर्ण क्योंकि जहरीले कीड़ो का इलाज दूसरी और कोई अस्पतालो में नही है ।

जहरीले जानवरों के काटने का होता था इलाज,अन्य जिलों, प्रदेशों से आते थे मरीज

आष्टा के सेमनारी रोड स्थित पुष्प कल्याण अस्पताल हॉस्पिटल को लगभग 40 वर्षो से अधिक हो चुके है । पहले यह अस्पताल कन्नौद रोड स्थित पुष्प विद्यालय के अंदर संचालित होता था लगभग 10 से वर्षो तक यह संचालित होने के बाद सेमनारी रोड पर संचालित हुआ जहा लगभग 30 वर्षो के लगभग हो चुके है और पुष्प कल्याण हॉस्पिटल में अधिकांश गर्भवती महिलाओं का प्रसव और जहरीले जानवर के काटने का उपचार होता रहा है । और अन्य दूर दूर के जिलों, प्रदेशों से जहरीले जानवरों के काटने के शिकार गंभीर मरीज उपचार हेतु आते थे ।लेकिन अब ऐसे मरीजों को यह से निराशा हाथ लग रही है अन्य जगह भटकने को मजबूर है । 

दअरसल तीन माह पूर्व आष्टा निवासी एक प्रसूता की मौत अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही से हो गई जिसके बाद से प्रसूता की मौत से आक्रोशित परिजनों ने अस्पताल प्रबंधन के खिलाफ कार्यवाही को लेकर लागातर ज्ञापन, धरना प्रदर्शन किया।आक्रोश बढ़ता देख जिला प्रशासन ने मजिस्ट्रियल जांच के आदेश दिए, मजिस्ट्रियल जांच में दोषी मानते हुए तीन को दोषी मानते हुए आष्टा थाने में आपराधिक मामला दर्ज हुआ।

जिसके बाद से मृतक प्रसूता के परिजनों ने आरोपियों की गिरफ्तारी और हॉस्पिटल के लाइसेंस निरस्त करने की मांग को लेकर 15 मार्च से तहसील कार्यालय के सामने धरना प्रदर्शन करना शुरू किया । बीती 22 मार्च को परिजनों की मांग और राजनीतिक दबाव में स्वास्थ्य विभाग ने पुष्प कल्याण अस्पताल का लाइसेंस निरस्त किया ।

लेकिन अब नगर के चौक चौराहो सहित सोशल मीडिया पर अस्पताल का लाइसेंस निरस्त कार्यवाही को दुर्भाग्यपूर्ण बताया जा रहा है लोगो के तर्क है कि जहरीले जानवर के काटने का शिकार मरीजों के लिए पुष्प कल्याण अस्पताल का इलाज बेहतर था जिससे अब कई लोगो को अन्य जगह भटकना पड़ेगा और इलाज के अभाव में मौत होगी तो उसका जिम्मेदार कौन होगा ।

खेर अस्पताल के लाइसेंस निरस्त के आदेश से किसी को न्याय मिले या ना मिले लेकिन जहरीले जानवर के शिकार कई गंभीर मरीजों के साथ यह अन्याय पूर्ण कार्यवाही है । जिसका खामियाजा आगे जाकर कई लोग परिणामस्वरूप अपनी जान देकर चुकाएगे । और हालत तो यह है कि अभी से कई गंभीर मामले सामने आ चुके है ।

एक मात्र सरकारी अस्पताल में नही व्यवस्था

शहर के लोगो के तर्क भी है कि आष्टा का एकमात्र सरकारी अस्पताल में पर्याप्त स्वास्थ्य व्यवस्था नही है। और छोटे बड़े मामलों में सीहोर जिला अस्पताल रेफर कर दिया जाता है ना ही अस्पताल में उचित स्वास्थ्य संसाधन है वही डॉक्टरों की कमी तो जगजाहिर है । ऐसे हालत में जीव, जंतु, जहरीले जानवर के काटे का उचित उपचार करने वाले प्रायवेट पुष्प कल्याण अस्पताल को भी सील करना न्याय संगत नही जिससे क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं में और परेशानी बढ़ेगी । लिहाजा ऐसे कई गरीब लोग हालातों का सामना करते है । कई लोगो के बच्चे सरकारी व्यवस्था के शिकार होकर मर चुके है! कई गर्भवती महिलाओं ने ईलाज के अभाव में दम तोड़ दिया है तो कई लोगो को आज भी रेफर फार्मले का शिकार होना पड़ता है लेकिन दलगत राजनीति ने इन गरीबो की कभी चीख पुकार नही सुनी ।

हमें यह हकीकत भी स्वीकारना होगी कि सरकारी व्यवस्था पहले से बेहतर हुई है 108,डायल100,जननी सुरक्षा जैसी सेवाओं से कई किलोमीटर दूर ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले ग्रामीणों को ज्यादा परेशानी नहीं होती।

लिहाजा सरकार ने अब बड़ी बडी मंजिले युक्त अस्पताल बनाये है लेकिन क्या यह सब स्वास्थ्य सेवाओं में पर्याप्त है ??  सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी, संसाधनों की कमी किसी से छुपी नहीं है । और यह भी एक कड़वा सच है की सरकारी अस्पताल में सही से उपचार मिलता तो प्रायवेट अस्पताल इस कदर पनपते नही ।

दअरसल सम्पन्न परिवार को सरकारी अस्पताल से ज्यादा प्रायवेट अस्पताल पर भरोसा होता है वही गरीब, निर्धन परिवार के लिए सरकारी अस्पताल ही आसरा होता है जहाँ सिर्फ ईश्वर ही उसका भगवान होता है । लेकिन सिर्फ घटिया राजनीति के चलते क्षेत्र के लोगो को अब अन्य लूट-खसोट करने वाली प्रायवेट दुकानों(अस्पताल) की तरफ रुख करना पड़ेगा। 

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