Dewas News : Will we not wake up even after the Sidhi accident? Waiting for more accidents? सिधी हादसे के बाद भी नही जागेंगे हम ? और भी हादसों का इंतजार ?
राहुल परमार । मंगलवार सुबह सीधी में एक भीषण सड़क हादसा हुआ, जिसकी चर्चा पूरे देश भर में हुई, वजह लगातार बढ़ते मौत के आंकड़े। एक के बाद एक निकलती लाशों ने एक-एक कर कई दावों की कलई खोल दी। हादसे के घंटों बाद जब दुर्घटनाग्रस्त बस बाहर निकाली गई तो विभागों की लापरवाही सतह पर आ गई।
- फिर सामने आने लगे सिस्टम से जुड़े कुछ पुराने सवाल -
- वाहनों की फिटनस की चैकिंग हुई क्या?
- 32 सीटर बस में 50 से ज्यादा लोग कैसे थे?
- ओवरलोडिंग पर क्यों नजरअंदाज किया जाता है?
खैर हादसा गंभीर था, मौत का आंकड़ा 40 पार पहुंचा तो नेताओं के सांत्वना भरे ट्वीट भी आए और सरकारी अमला भी जुटा। कार्रवाई के दावे भी हुए। आर्थिक मदद का मलहम भी लगाया, लेकिन जख्मों की तरह कुछ सुलगले सवाल अब भी सबको साल रहे हैं।
बात करें देवास की तो यहां पर भी पूर्व में बसें पलटी खा चुकी हैं। रसूलपुर चौराहे की घटना हो या सिया क्षेत्र की ! आज भी बसों में सवारियों को भेड़-बकरियों की तरह ठूंस-ठूंस कर बैठाया जाता है। कोरोना गाईडलाइन की बात तो छोड़ ही दीजिए । देवास के रसूलपुर चौराहा से लेकर भोपाल चौराहा तक बसों और मैजिक का जादू देखने को ही मिलता है। इनके फिटनेस की कहानी तो आपको आने वाली खबरों में देंगे ही लेकिन रोड पर जिस प्रकार इनके चलने का ढंग होता है, उससे तो यह लगता है मानो यह रोड पर वाहन नही हवा में हवाई जहाज चला रहे हों। लापरवाही की हद देवास में कभी से पार हो चुकी है। अब केवल किसी न किसी हादसे का इंतजार है।
इन्दौर- देवास के रुट पर तो सवारियों को आगे से बैठाकर पीछे की ओर धकेल-धकेल कर बैठाया जाता है। वहीं सवारियों को बैठाने की होड़ में आम जन के साथ रोड पर खिलवाड़ किया जाता है।
कहां है बस स्टॉप ?
वैसे तो शहर में बस स्टॉप बनाये गए हैं लेकिन यहां वाहन कभी-कभी ही रुकते हैं। सामान्यत : जनता अन्य स्थानों से बस में बैठने के लिए खड़ी रहती है। पहले देवास में ट्रेफिक के नाम पर बड़ी-बड़ी चौकियां हर चौराहे पर बन चुकी थी लेकिन शायद वो पैसा कमाने के लिए लगाई गई थी। आज भी देवास में परिवहन और व्यवस्था को लेकर मात्र प्रयोग ही किये जा रहे हैं।
प्रशासन, परिवहन विभाग, नगर निगम और ट्रेफिक पुलिस ?
देवास में यह चारों विभाग तब ही जागृत होते हैं जब इन्हें कोई चालान वसूलना होता है। आलम यह है कि ट्रेफिक विभाग के कर्मचारी दिन भर बाहरी राज्यों से आये वाहनों पर नजर रखते हैं तो यातायात की व्यवस्था यातायात सप्ताह में सेवा देने वाले बच्चें देख रहे हैं। ऐसे में दुर्घटना की संभावना बढ़ने का अंदेशा भी बना रहता है। वहीं परिवहन विभाग ने शहर के कितने अनफिट वाहनों को फिट दिखा दिया होगा यह बताना थोड़ा मुश्किल लग रहा है। इसका आंकलन आप स्वयं शहर में दौड़ रहे जंग खाये वाहनों से लगा सकते हैं। शहर की मैजिकों में दरवाजों में तार ही लगे हैं। ऐसे में कोई दुर्घटना होती है तो इसका जवाबदार कौन होगा ? यातायात व्यवस्था को सही करने में एक मात्र क्रेन है जो पूरे शहर के साथ शहर के केवल चक्कर ही लगाती है।
बात करें नगर निगम की तो इनका सर्विस रोड पार्किंग स्थल बन चुका है । यह कालोनीवालों के लिए चलने के लिए नही बल्कि बड़े दुकानदारों की पार्किंग के लिए बनाये गए हैं। प्रशासन को तो वैसे कोरोना काल में ही चालान काटने की फुरसत मिली थी अब उन्हें इन विषयों पर ध्यान देने में असुविधा सी लगती है।
फिटनेस के संबंध में जिला परिवहन अधिकारी जया वसावा को संपर्क किया लेकिन उन्होनें फोन नही उठाया। वहीं इस मामले मे यातायात डीएसपी किरण शर्मा से भी संपर्क किया गया लेकिन उन्होने भी फोन नही उठाया।
स्पष्ट है अधिकारियों को शहर की कितनी चिंता है ? क्या इसी प्रकार अधिकारियों का लापरवाह रवैया सामने आते रहेगा या फिर शहरहित में कुछ प्रयास किया जाएगा ?
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