नियम विरुद्ध किए गए स्थानांतरण प्रकरण में वन मंडल अधिकारी द्वारा प्रभारी अधिकारी बनाने के पूर्व ही दिया जवाब !
राहुल परमार , देवास । देवास वन मंडल में कुछ दोनों पूर्व नियम विरुद्ध श्री शंकर लाल यादव का स्थानांतरण बांधवगढ़ से उपवन मंडल अधिकारी कन्नौद किया गया था। श्री शंकर लाल यादव वर्ष 2017 से कन्नौद से ही उप वन मंडल अधिकारी, कन्नौद के रूप में पदस्थ थे। माह नवंबर 2019 में उनका का स्थानांतरण बांधवगढ़ किया गया था उसके बाद उनको माह नवंबर 2019 में देवास वन मंडल से बांधवगढ़ के लिए भार मुक्त कर दिया गया था । सुत्रों की माने तो इसके बाद श्री शंकर लाल बीमारी का बहाना करके अनुपस्थित हो गए और 1 साल 1 माह बाद किसी प्रकार से अपनी पोस्टिंग कन्नौद करवा कर बिना बांधवगढ़ से भार मुक्त हुए ऑर्डर के दूसरे दिन बाद देवास उपस्थित हो गए और कन्नौद का प्रभार भी एजूम कर लिया। इस पर कन्नौद में अभी 6 माह पूर्व भी पदस्थ हुए श्री कैलाश वर्मा जिनका रिटायरमेंट 3 महीने बाद है, उच्च न्यायालय इंदौर से स्थगन आदेश ले आए । स्थगन आदेश में शासन से 4 सप्ताह में जवाब मांगा था।
सुत्रों से प्राप्त जानकारी अनुसार ज्ञात हुआ है कि वन मंडल अधिकारी देवास श्री पी एन मिश्रा ने राजनीतिक दबाव के चलते श्री शंकर लाल यादव को अनुचित लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से बिना प्रभारी अधिकारी नियुक्त हुए उच्च न्यायालय इंदौर में नियम विरुद्ध प्रभारी अधिकारी की हैसियत से जवाब दावा प्रस्तुत किया है। यह कार्य गैरकानूनी होकर एक व्यक्ति को लाभ पहुंचाने के लिए किया गया है क्योंकि पूर्व में वन मंडल अधिकारी देवास ने एक रेंजर के ट्रांसफर में एक माह बाद प्रभारी अधिकारी की नियुक्ति होने के 2 माह तक जवाब दावा प्रस्तुत नहीं किया था और रेंजर को अनुचित रुप से भार मुक्त नहीं किया था। श्री शंकर लाल यादव को बिना बांधवगढ़ से बाहर हुए और फिटनेस दिए बिना ही देवास वन मंडल में ज्वाइन कराने का मामला पूर्व से ही चर्चा में है । शंकर लाल यादव विगत 10 वर्षों से देवास वन मंडल में है पदस्थ है । पहले रेंजर थे एवं बाद में 7 साल तक उपवन मंडल अधिकारी की हैसियत से पदस्थ रहे हैं । मध्यप्रदेश शासन की स्थानांतरण नीति 2019 के अनुसार कोई व्यक्ति यदि उसी स्थान पर पूर्व में रहा है तो लगातार दूसरे कार्यकाल में उस स्थान पर नियुक्ति नहीं होगी एवं यह भी नियम है कि यदि किसी व्यक्ति को रिटायरमेंट में 1 साल या उससे कम समय बचा है तो फिर उसको स्थानांतरण नहीं किया जाएगा। श्री शंकर लाल यादव के प्रकरण में स्थानांतरण नीति के नियमों की धज्जियां उड़ाई गई हैं। बिना प्रभारी अधिकारी की नियुक्ति हुए प्रभारी अधिकारी की हैसियत से हस्ताक्षर करना न्यायालय को गुमराह करने और झूठा शपथ पत्र देने के श्रेणी में आता है।
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