ये ही समय है,खुद से मिलने का-खुद को पहचानने का - कोरोना के खिलाफ जंग - 1

मोहन वर्मा- देवास


     मोहन वर्मा- देवास (स्वतंत्र पत्रकार )


          वैश्विक महामारी कोरोना के कारण आज समूचा विश्व घरों में कैद है । भागती दौड़ती और यांत्रिक कही जाने वाली ज़िन्दगी थम सी गई है । कोरोना वायरस के संक्रमण से हज़ारों लोग असमय ही अपनी जान से हाथ धो रहे है। विज्ञान और तकनीक को अपनी मुठ्ठी में मानने वाले विश्व के अभिमान को कोरोना वायरस चुनौती दे रहा है । गर्मजोशी से हाथ मिलाने,गले मिलने और बांहें पसारने वाले लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए घरों में कैद होकर रहने को अभिशप्त से हो गए है ।



          भारत जैसे उत्सवप्रिय और अपनी मिलनसारिता के लिए पहचाने जाने वाले हमारे देश और समाज मे विगत कई सप्ताह से घरों में कैद और पीएम मोदी जी द्वारा आज आगामी 4 मई तक बढ़ाये गए लॉक डाउन का नई पीढ़ी और उम्रदराज लोगों के लिए भी शायद इस तरह का ये पहला अनुभव है जब अपनी पढ़ाई,नौकरी,व्यवसाय,या और जो कुछ भी लोग कर रहे थे उनसे हटकर घरों में सिमट जाने के अलावा दूसरा कोई विकल्प बाकी नही रह गया है ।



          कहा जाता है जान है तो जहान है । कोरोना संक्रमण  के भय ही सही, बात बात पर बोरियत की बातें करने वाले  घरों में कैद लोग धीरे धीरे इस नई जीवन शैली के भी अभ्यस्त होते नज़र आ रहे है।  दरअसल अगर सकारात्मक नजरिये से सोचें तो ईश्वर ने हमें ये अवसर शायद इसलिए दिया है कि समय का हर दम रोना रोते,यांत्रिक ज़िन्दगी जीते हम घर परिवार,माता पिता और बीबी बच्चों से दूर होते जा रहे थे। खुद से मिलने का, खुद के शौक पूरे करने का,खुद को पहचानने का समय ही कहाँ रह गया था हमारे पास ।



        नकारात्मक ख़बरों से ऊबे हम लोगों तक आज फेसबुक वाट्सअप,ट्विटर जैसे सोशल मीडिया के माध्यम से अब ऐसी खबरें सामने आ रही है जहां पति पत्नि के साथ मिलकर रसोई में रोज परिवार के लिए कुछ नई डिश बना रहा है,बच्चों को होमवर्क करवा रहा है या उनके साथ खेल कर एक नई ऊर्जा पा रहा है । सोशल मीडिया पर लोग,अपनी अपनी प्रतिभा साझा कर रहे है अपने अपने शौक पूरे कर रहे है फिर चाहे वो गायन,लेखन,वादन,या कोई और कला हो । कुछ लोग डायरी लिखकर खुद से आत्म साक्षात्कार कर रहे है तो कुछ थुलथुल होते शरीर को व्यायाम के जरिये फिट करने के प्रयासों में लगे है ।



        केंद्र शासन के प्रयासों से दूरदर्शन पर रामायण और महाभारत जैसे सीरियल्स फिर से शुरू किए गए है,जो धर्म और संस्कारों से दूर होती नई (और पुरानी भी) पीढी को उनसे जोड़ने का काम कर रहे है। अगर ये कहा जाए कि पौराणिक काल के रामायण,महाभारत,भागवत गीता या और और अन्य धर्म ग्रंथों में वो सीख है जो आज के समय मे हम सबके लिए जरूरी सबक की तरह है तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी । हम हर पल कहीं न कहीं से,कुछ न कुछ सीख सकते है और सीख रहे है ।



         कोरोना संकट का ये समय तो निकल ही जायेगा,क्योंकि समय कभी रुकता नहीं मगर कल को हमें ये अफसोस नही होना चाहिए कि हमारे पास भरपूर समय होने के बाद भी हम वो सब न कर सके जो हम कर सकते थे। खुद से मिलें,खुद को पहचाने और फिर देखें कि हमारे पास छोड़ने को कितनी बुराईयां है और अपनाने को कितनी खुशियां ।



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