परिवार में माता पिता और बीबी बच्चों संग इतना समय देने का किसने सोचा था - लौट आया सुनहरा समय.....कोरोना संकट - 2
मोहन वर्मा,देवास
वैश्विक महामारी कोरोना के कारण आज समूचा विश्व घरों में कैद है । भागती दौड़ती और यांत्रिक कही जाने वाली ज़िन्दगी थम सी गई है । गर्मजोशी से हाथ मिलाने,गले मिलने और बांहें पसारने वाले लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए घरों में कैद होकर रह गए है ।
कल तक जिनके पास मायावी दुनिया की उलझनों में उलझने और भागते दौड़ते रहने के कारण अपने माता पिता,बीबी बच्चों के लिए रत्ती भर भी समय नहीं था आज वे अपने परिवार के साथ समय बिताते हुए एक दूसरे को ज्यादा बेहतर तरीके से समझ रहे है । अगर कहें कि कोरोना के लॉक डाउन के चलते परिवारों का सुनहरा समय लौट आया है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
अगर आज से पांच छह दशक पहले की बात करें तो उसे आज भी लोग गोल्डन टाईम के नाम से ही कहा जाना पसंद करते है जहां भाईचारा, मेलमिलाप,पारिवारिक आनंद तीज त्यौहार और सुख दुख लोगों की प्राथमिकता पर था।
नॉकरी,धंधे,व्यवसाय और रोजी रोटी की मारामारी तब नही थी ऐसा भी नहीं है,मगर संवेदना से लबरेज लोगों के पास अपने साथ दूसरे के दुख सुख के लिए खुला दिल था। आज कोरोना संकट के इस समय मे भी कुछ लोग जरूरतमंदों के लिए अथक रूप से सक्रिय हैं ।
ज्यादा पीछे नही जायें तो दूरदर्शन की शुरुवात के अस्सी के दशक में, मोहल्ले के एक घर मे टीवी होने का आनंद पूरा मोहल्ला लेता था,और चाय पकोड़ों के साथ सुबह 9 बजे से 1 बजे तक रामायण,महाभारत,बुनियाद, जैसे सीरियल्स के साथ कब दोपहर हो जाती थी किसी को भी पता नहीं चलता था । आज सबके अपने अपने घर,परिवार, सम्रद्धि सब कुछ है । दो दो तीन तीन टीवी,गाड़ियां सबकुछ है मगर समय नहीं है । न खुद के लिए, न माता पिता के लिए,न बीबी बच्चों के लिए ऐसे में पड़ोसी की तो बात ही क्या करना । मगर हाँ कोरोना के बहाने ये जो लॉक डाउन ने अनिवार्यत: हमें घरों में परिवार के साथ रहने का अवसर दिया है क्या उसे परिवार का लौटा हुआ सुनहरा समय नहीँ माना जा सकता ?
आज बच्चों को पिता का प्यार मिल रहा है । बच्चों के साथ खेलते,उन्हें होमवर्क करवाते लोग एक सुखद अनुभूति से गुजर रहे है । घरों में वृद्ध माता पिता के साथ पारिवारिक बातें साझा करते अपने बेटे बहुओं के व्यवहार ने सचमुच पुराना समय तो लौटा ही दिया है । पति किचन में पत्नी के साथ आड़ी टेडी चपाती के साथ रोज कुछ नया बनाने की कोशिश कर रहा है और उससे परिवारों में जो आत्मीयता और पत्नी,बच्चों के चेहरे पर खुशी नज़र आ रही है वो अनमोल है ।
कहा जाता है जान है तो जहान है । कोरोना संक्रमण के भय ही सही, बात बात पर बोरियत की बातें करने वाले घरों में कैद लोग धीरे धीरे इस नई जीवन शैली के भी अभ्यस्त होते नज़र आ रहे है। दरअसल अगर सकारात्मक नजरिये से सोचें तो ईश्वर ने हमें ये अवसर शायद इसलिए दिया है कि समय का हर दम रोना रोते,यांत्रिक ज़िन्दगी जीते हम घर परिवार,माता पिता और बीबी बच्चों से दूर होते जा रहे थे। खुद से मिलने का, खुद के शौक पूरे करने का,खुद को पहचानने का समय ही कहाँ रह गया था हमारे पास ।
नकारात्मक ख़बरों से ऊबे हम लोगों तक आज फेसबुक वाट्सअप,ट्विटर जैसे सोशल मीडिया के माध्यम से अब ऐसी खबरें सामने आ रही है जहां पति पत्नि के साथ मिलकर रसोई में रोज परिवार के लिए कुछ नई डिश बना रहा है,बच्चों को होमवर्क करवा रहा है या उनके साथ खेल कर एक नई ऊर्जा पा रहा है । सोशल मीडिया पर लोग,अपनी अपनी प्रतिभा साझा कर रहे है अपने अपने शौक पूरे कर रहे है फिर चाहे वो गायन,लेखन,वादन,चित्रकारी,या कोई और कला हो । कुछ लोग डायरी लिखकर खुद से आत्म साक्षात्कार कर रहे है तो कुछ थुलथुल होते शरीर को व्यायाम के जरिये फिट करने के प्रयासों में लगे है ।
केंद्र शासन के प्रयासों से दूरदर्शन पर रामायण और महाभारत जैसे सीरियल्स फिर से शुरू किए गए है,जो धर्म और संस्कारों से दूर होती नई (और पुरानी भी) पीढी को उनसे जोड़ने का काम कर रहे है। अगर ये कहा जाए कि पौराणिक काल के रामायण,महाभारत,भागवत गीता या और और अन्य धर्म ग्रंथों में वो सीख है जो आज के समय मे हम सबके लिए जरूरी सबक की तरह है तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी । हम हर पल कहीं न कहीं से,कुछ न कुछ सीख सकते है और सीख रहे है ।
कोरोना संकट का ये समय तो निकल ही जायेगा,क्योंकि समय कभी रुकता नहीं मगर कल को हमें ये अफसोस नही होना चाहिए कि हमारे पास भरपूर समय होने के बाद भी हम वो सब न कर सके जो हम कर सकते थे। खुद से मिलें,खुद को पहचाने और फिर देखें कि हमारे पास छोड़ने को कितनी बुराईयां है और अपनाने को कितनी खुशियां ।
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