भारतीय संस्कृति मे नारी का स्थान


आरती शाह, लेखक


सर्वप्रथम नारी क्या है माँ,बहन, बेटी,पत्नी और न जाने कितने रूप को धारण करने वाली जो कि नारी के नाम से जानी जाती है नारी प्राचीन काल से ही इल पृथ्वी पर आवतार लेकर जन्म लेती है। ये स्त्री माँ के रूप में अपने बच्चे को दूध पिलाती है एक बहन बनकर अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती है। अपने पति का आधा अंग बनकर उसकी अर्धांगिनी कहलाती है तो कभी एक बेटी बनकर अपने पिता का नाम रोशन करती है।  भारतीय सँस्कृति में नारी के महत्व की बात करे तो वैदिक काल मे नारी की स्थिति आज के समाज से अधिक आदरणीय व स्वतंत्रतापूर्ण हुआ करती थी। वैदिक काल मे कोई भी धार्मिक कार्य नारी की उपस्थिति के बगेर शुरू नहीं होता था। महिलाओं को धार्मिक कार्यो व राजनीति में भी पुरुष के  समान ही समानता हासिल थी। वे वेद पढ़ती और उसके द्वारा धार्मिक ग्रंथो को पढ़ाने का काम भी किया जाता था। मैत्री,गार्गी जैसी नारिया इसका उदाहरण है। ऋग्वेद की ऋचाओं में लगभग 414 ऋषियों के नाम मिलते हैं जिनसे 30 नाम महिला ऋषि के मिलते है । यंही नही महिलाएं युद्ध कला में भी पारंगत होकर राजपाठ भी संभालती थी। कंहा गया है कि नारी नर की आत्मा का आधा भाग है और नारी के बिना नर का जीवन अधूरा है और नारी के बिना इस सृष्टि की तुलना नही की जा सकती है सनातन धर्म में पुरुष के रूप में देवता और नारी को देवी के रूप में पूजा जाता था। जैसे माँ सरस्वती, लक्ष्मी,दुर्गा,काली आदि। वैदिक काल में नारी माँ,बेटी,बहन ग्रहणी के रूप मे मानी जाती थी। उसे भी पुरुष के समान ही शिक्षा दी जाती थी जैसे - वेद ज्ञान,धनुर विद्या,नृत्य संगीत,शास्त्र आदि। नारी को सभी कलाओं में दक्ष किया जाता था उसके बाद उसे वैवाहिक जीवन की राह दिखाई जाती थी। अब वर्तमान युग में तो नारी का महत्व और अधिक हो गया है। वह आज पुरुष के समान आधुनिक तकनीकी क्षेत्रो में आगे बढ़ रही है। और देश, दुनिया में अपना सर्वश्रेष्ठ देने को तैयार है। अपने परिवार के साथ साथ वो अपने कार्यक्षेत्र को भी बेहतर तरीके से सम्भाल रही है और कुछ गिनी चुनी कुरीतियों,प्रथाओं का सामना कर अपने आप को मजबूती के साथ खड़ा करने को अग्रसर है। हाँ वर्तमान में पुरुष वर्ग का जो नजरिया है महिलाओं को देखने का उसमे परिवर्तन की आवश्यकता है क्योकि आज की महिला अबला नही सबला है जो बुराई को मुँह तोड़ जवाब देने को तैयार है।


 


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