सरोकार का सवाल

उत्तर भारत के बड़े हिस्से, खासतौर से दिल्ली व इसके आसपास के इलाकों में वायु प्रदूषण से बिगड़ते हालात पर संसद में मंगलवार को चर्चा के दौरान जिस तरह से बड़ी संख्या में सांसद नदारद रहे, वह वायु प्रदूषण से कहीं ज्यादा गंभीर चिंता का विषय है। इससे यह पता चलता है कि गंभीर मुद्दों के प्रति हमारे माननीय जनप्रतिनिधि कितने सजग हैं और आमजन से जुड़े अहम मुद्दों के प्रति उनका कितना सरोकार है! मामला सिर्फ सांसदों तक ही सीमित नहीं है, ऐसे गंभीर मुद्दे पर चर्चा के दौरान मंगलवार को लोकसभा के अधिकारी और संबंधित स्टाफ भी सदन में नहीं पहुंचे। लेकिन जिनको चर्चा करनी है अगर वे ही सदन में न हों तो अधिकारी पहुंच कर क्या करते ! इससे लोकसभाध्यक्ष का नाराज होना स्वाभाविक ही है। पिछले एक महीने से जहरीली होती हवा से दिल्ली जिस तरह हांफ रही है और इस गंभीर समस्या पर देश की सर्वोच्च अदालत तक सक्रिय है, ऐसे में इस मुद्दे पर चर्चा के दौरान बयासी फीसद सांसदों की गैरमौजूदगी यह बताने के लिए पर्याप्त है कि प्रदूषण उनके लिए कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। इससे पहले शुक्रवार को शहरी दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के मुद्दे पर बुलाई बैठक में पच्चीस सांसद बैठक से नहीं पहुंचे थे। सदन की बैठकों से जनप्रतिनिधियों का गैरहाजिर रहना कोई नई बात नहीं है। अक्सर देखा गया है कि महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा के दौरान सांसद सदन में नहीं होते हैं। इन दिनों वायु प्रदूषण का मुद्दा सबसे गंभीर इसलिए भी है कि इससे न सिर्फ दिल्ली, बल्कि देश के कई शहर त्रस्त हैं। दुनिया के सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण वाले शहर भारत में ही हैं और इनमें भी पहले दस शहर उत्तर भारत के हैं। ऐसे में अगर इस समस्या पर चर्चा से बचा जाएगा तो समाधान के रास्ते कैसे निकलेंगे, यह सोचने की बात है। हालांकि जितने सदस्यों ने भी वायु प्रदूषण पर चर्चा के दौरान अपने विचार रखे, वे सब इस बात पर एकमत दिखे कि इस समस्या से निपटने के लिए संसद को साझा जिम्मेदारी लेनी होगी। पर यह हो कैसे, इसका व्यावहारिक उपाय कोई नहीं सुझा रहा। वायु प्रदूषण के मुद्दे पर चर्चा एक दूसरे पर ठीकरा फोड़ने और दोषारोपण करने पर ही केंद्रित रही। कोई दल मानने को तैयार नहीं है कि पराली जलाने से वायु प्रदूषण खतरनाक रूप लेता जा रहा है। प्रदूषण किन कारणों से बढ़ रहा है, यह तो विवाद का विषय होना ही नहीं चाहिए। अगर पराली जलाने से प्रदूषण नहीं हो रहा हैया यह प्रदूषण का बड़ा कारण नहीं है तो क्यों सुप्रीम कोर्ट को इतने सख्त कदम उठाने पड़ रहे हैं? हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में किसान अभी भी पराली जला रहे हैंइसके पीछे वजह यही है कि प्रशासन एक सीमा के बाद हाथ खडे कर दे रहा हैपराली जलाना किसानों की मजबूरी है. वरना खेती कैसे होगी। जनप्रतिनिधि चाहें तो किसानों से संवाद करके सकते हैं। संसद में बहस के दौरान ऐसा कुछ नया नहीं कहा जा रहा जो कोई उपाय सुझाता हो। एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराने के बजाय बेहतर हो सांसद अपनेअपने क्षेत्रों में जाएं और किसानों से संवाद करें, प्रशासन उनकी मदद क्यों नहीं कर पा रहा, पता लगाएंप्रदूषण फैलने के दूसरे कारणों और उनके समाधान के लिए धरातल पर काम करें। सांसदों के अधिकार और विकास के लिए मिलने वाला पैसा कम नहीं होता। बस पहल करने की जरूरत है।


Comments

Popular posts from this blog

हाईवे पर होता रहा मौत का ख़तरनाक तांडव, दरिंदों ने कार से बांधकर युवक को घसीटा

7 हजार की रिश्वत लेते रंगे हाथ धराये तहसीलदार, आवेदक से नामांतरण के लिये मांग रहे थे रिश्वत ! Tehsildar caught red handed taking bribe of Rs 7 thousand, was demanding bribe from the applicant for name transfer!

फ्रीज में मिली महिला की लाश संबंधी सनसनीख़ेज़ अंधे क़त्ल का 10 घंटे में पर्दाफ़ाश, 5 साल लिव इन में रहने के बाद घोंट दिया पिंकी का गला ! 10 माह से रखा था फ्रिज में महिला का शव !