गहराती चुनौतियां
छत्तीसगढ़ के जंगलमहल और महाराष्ट्र के गढ़चिरौली सहित देश के तमाम माओवादी हिंसा से प्रभावित इलाकों में किस तरह की चुनौतियां खड़ी हैं, यह सभी जानते हैं। यह भी तथ्य है कि इन इलाकों में समस्या से निपटने से लेकर सुरक्षा बलों की निगरानी में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी जा रही है। लेकिन यह समझना मुश्किल है कि इसके बावजूद माओवादियों पर पूरी तरह काबू पाना कैसे संभव नहीं हो पा रहा है। रविवार को सामने आई एक खबर के मुताबिक बस्तर में माओवादी हिंसा से सबसे ज्यादा प्रभावित सुकमा जिले में कुछ समय पहले सीआरपीएफ के एक शिविर के ऊपर ड्रोन यानी मानवरहित यान मंडराता देखा गया। जैसे ही सीआरपीएफ के जवान सक्रिय हुए, वैसे ही वह गायब हो गया। यह इस बात का साफ संकेत है कि एक तो ड्रोन जैसे संवेदनशील साधन भी माओवादियों की पहुंच के दायरे में आ चुके हैं और दूसरे, वे उनके जरिए अपने प्रभाव वाले इलाकों में सुरक्षा बलों की गतिविधियों पर निगरानी करने की कोशिश कर रहे हैं। जबकि अब तक इस उपकरण का उपयोग केवल सुरक्षा बल माओवादियों पर निगरानी के लिए करते रहे हैं। इस घटना के सामने आने के बाद सुरक्षा बलों को ड्रोन पर नजर पड़ते ही नष्ट करने के आदेश दिए गए हैं। लेकिन इससे यह साफ है कि माओवाद प्रभावित इलाकों में सुरक्षा बलों की चुनौतियां बढ़ सकती हैं। निश्चित तौर पर यह गहरी चिंता की बात है और इसके बाद यह पता लगाने की जरूरत है कि माओवादी समूहों तक ड्रोन जैसे संवेदनशील उपकरण कैसे पहुंचे और इसका जरिया कौन है। फिलहाल इस मामले में शुरुआती जांच के दौरान खुफिया एजेंसियों को मुंबई के एक दुकानदार पर शक है कि उसने अज्ञात लोगों को ड्रोन बेचे थे। हालांकि यह कोई पहला मौका नहीं है जब माओवादियों के पास निगरानी रखने के लिए ड्रोन या दूसरे उपकरण होने के संकेत मिले हों। करीब साढ़े चार साल पहले खुद माओवादियों की एक चिट्ठी के जरिए हुए खुलासे के हवाले से यह खबर आई थी कि सुरक्षा बलों से मुकाबला करने के लिए वे ड्रोन और मोर्टार बनाना सीख रहे हैं। इसके अलावा, वे मोटरसाइकिल के इंजन को जोड़ कर ड्रोन और रिमोट के जरिए आइआइडी विस्फोट करने की तकनीक पर भी काम कर रहे हैं। यानी अब तक इस संदर्भ में जो ब्योरे उपलब्ध हो सके हैं, उससे यही संदेह है कि माओवादी समूहों की पहुंच या तो ड्रोन मुहैया कराने वालों तक है या फिर वे इसे तैयार करने की क्षमता विकसित कर चुके हैं। जाहिर है, दोनों ही स्थितियों में यह सुरक्षा बलों और सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है कि माओवादी समूहों की आधुनिक तकनीकी तक पहुंच का सामने कैसे किया जाए। विडंबना यह है कि एक ओर माओवाद प्रभावित इलाकों में समस्या पर काबू पाने का दावा किया जा रहा है और दूसरी ओर माओवादियों की क्षमता में बढ़ोतरी के संकेत मिल रहे हैं। यह किसी से छिपा नहीं है कि आए दिन माओवाद प्रभावित इलाकों में तैनात सीआरपीएफ के शिविर या काफिलों पर घात लगा कर हमला किया जाता है और उसमें नाहक ही जवानों की जान चली जाती है। file
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