संकट का उद्योग

भारत का ऑटोमोबाइल उद्योग करीब साल भर से जिस घोर संकट से गुजर रहा है, वह चिंताजनक है। सोमवार को ऑटोमोबाइल कारोबार से जुड़े संगठन सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (सिआम) ने जो रिपोर्ट जारी की, वह बता रही है कि पिछले बाईस साल में पहली बार ऐसा हुआ है जब उद्योग हांफ रहा है। साल 2000 और 2008 की मंदी में भी हालात इस कदर नहीं बिगड़े थे कि कारखानों के चक्क थम रहे हों, उत्पादन रोका जा रहा हो, बिक्री ठप पड़ गई हो और कामगारों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा हो। पर आज की तस्वीर भयावह है। सबसे गंभीर बात तो यह है कि इस उद्योग से जुड़े लोगों की नौकरियों पर तलवार लटक गई है। पिछले छह महीने में साढे तीन लाख लोगों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गयापिछले दस महीनों से वाहनों की बिक्री में गिरावट की खबरें आ रही हैं। हर आने वाले महीने में पिछले महीने के मुकाबले गिरावट का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। जुलाई के महीने में वाहन बिक्री में इकतीस फीसद की गिरावट रही थी और अगस्त में इसमें एक फीसद का और इजाफा हो गया और गिरावट बनीस फीसद हो र बत्तीस फीसद हो गई। यह बात हैरान करने वाली इसलिए भी है कि हमेशा गुलजार रहने वाला भारत का वाहन बाजार, खासतौर से कार बाजार आज इस हालत में भी नहीं है कि लोगों का रोजगार बचा सके। अगर पिछले दो दशकों पर नजर डालें तो हर साल भारत में लगने वाले ऑटो-एक्सपो जैसे मेले इस बात का संकेत होते थे कि भारत का बाजार काफी संभावनाएं लिए हुए है। देश- दनिया की कंपनियां जो भी नया वाहन बाजार में उतारतीं, उन्हें भारत में बड़ा खरीदार वर्ग नजर आता था। लेकिन आज हालत यह है कि छोटी से छोटी गाड़ी खरीदने वाले भी बाजार से नदारद हैं। इसका असर यह हुआ है कि वाहन निर्माता कंपनियों को उत्पादन रोकने जैसे कदम उठाने को मजबूर होना पड़ा है। कारखानों में हफ्ते में दो-दो दिन छुट्टी रखी जा रही है। जो पहले से जमा स्टॉक है, उसे निकालने के लिए कंपनियां छूट के भारी-भरकम पैकेज दे रही हैं, लेकिन खरीदार नहीं हैं। इसी वजह से तीन सौ से ज्यादा डीलरों को शोरूम तक बंद करने पड़े। यह स्पष्ट रूप से अच्छा संकेत नहीं कहा जा सकता। ऑटोमोबाइल उद्योग के मौजूदा संकट के कई कारण हैं। पहला कारण बैंक कर्ज महंगा होना रहा। रिजर्व बैंक ने इस साल पांच बार नीतिगत दरों में कटौती की, ताकि बैंक कर्ज सस्ता करें। पर बैंकों ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। इसका असर बाजार और बिक्री पर पड़ा। दूसरा कारण यह रहा कि पिछले एक साल में वाहन कंपनियों ने जो नए-नए मॉडल पेश किए हैं उनमें सुरक्षा संबंधी अतिरिक्त उपाय किए गए हैं, इससे गाड़ियों की लागत बढ़ी। वाहन उद्योग जीएसटी दर को अट्ठाईस फीसद से घटा कर अठारह फीसद करने की मांग लंबे समय से कर रहा है। जीएसटी दरों ने भी गाडियों के दाम बढ़ाने में आग में घी का काम किया है। इसके अलावा भारत-6 मानक और बिजली से चलने वाले वाहनों को लेकर सरकार की नीति स्पष्ट नहीं होने से भी खरीदार असमंजस में हैं। कंपनियों का अपना मुनाफा न गिरे, इसके लिए उन्हें सरकारी राहत का इंतजार है। संकट के इसी दौर में एक बड़ी वाहन निर्माता कंपनी ने अपने कर्मचारियों को पौने दो-दो लाख रुपए बोनस देने का एलान किया है। ऐसे में दसरी कंपनियां भले बोनस न दें, लेकिन मुनाफे में थोड़ी-बहुत कटौती करके छंटनी जैसा कदम उठाने से तो बच ही सकती हैं!


Comments

Popular posts from this blog

हाईवे पर होता रहा मौत का ख़तरनाक तांडव, दरिंदों ने कार से बांधकर युवक को घसीटा

7 हजार की रिश्वत लेते रंगे हाथ धराये तहसीलदार, आवेदक से नामांतरण के लिये मांग रहे थे रिश्वत ! Tehsildar caught red handed taking bribe of Rs 7 thousand, was demanding bribe from the applicant for name transfer!

फ्रीज में मिली महिला की लाश संबंधी सनसनीख़ेज़ अंधे क़त्ल का 10 घंटे में पर्दाफ़ाश, 5 साल लिव इन में रहने के बाद घोंट दिया पिंकी का गला ! 10 माह से रखा था फ्रिज में महिला का शव !