क्या कांग्रेस को 15 वर्ष का वनवास स्मृति में नहीं है?

देवास। विगत दिनों से मध्यप्रदेश प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद हेतु दर्जनों नाम शामिल होकर समाचार पत्रों की सुर्खियां बटोर रहे हैं। 31 आदिवासी विधायक अपने वर्ग को यह पद दिलाना चाहते हैं तो कई मंत्रीगण भी अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल हो गए हैं। कांग्रेस की गुटबाजी विधानसभा चुनाव में गलत टिकट वितरण से लेकर मंत्रिमंडल के गठन तक दबी जुबान उसे अब समाचार पत्रों में प्रमुखता से छप रही है, जबकि प्रदेश के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया, कमलनाथ जी एवं नर्मदा परिक्रमा के नायक से दिग्विजय सिंह के अथक प्रयासों से मध्यप्रदेश में भाजपा के 15 वर्षों से किए जा रहे हैं। कुशासन एवं भ्रष्ट तंत्र को प्रदेश सत्ता से बाहर करके कांग्रेस को सत्तासीन करके मृत प्रायरू पड़ी है। कांग्रेस को पुनर्जीवित किया है। कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की पूछ परख बड़ी है। जबसे प्रदेश के दिग्गज नेताओं का नाम कांग्रेस पद के अध्यक्ष पद हेतु सरगर्मी का राजनीतिक विषय बना तब से ही एक ग्रुप दूसरे ग्रुप को दूसरा ग्रुप तीसरे को को राजनैतिक निशाने पर लेकर कांग्रेस पार्टी को आस्थिरता की ओर ढकेलने का प्रयास कर रहे हैं। जिससे कांग्रेस कार्यकर्ताओं तथा आम मतदाताओं में गलत संदेश जा रहा है श्री दिग्विजय सिंह जी के समर्थक समर्थक मंत्री गोविंद नारायणसिंह जी के नेतृत्व में भी वरिष्ठ कांग्रेसी नेता श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया से सौहार्दपूर्ण वातावरण में भेंट की है। प्रदेश के मुखिया कमलनाथ जी ने भी अपने बयान में कहा कि प्रदेश की सरकार कौन चला रहा है, प्रदेश की जनता भली भांति जानती है। ऐसे में वन मंत्री उमंग सिंगार का लगातार दो दिनों से प्रदेश के कद्दावर नेता दिग्विजय सिंह के विरोध में तीखे प्रहार करना यह सुनी सुनियोजित राजनीति हिस्से के अलावा कुछ प्रतीत नहीं होता। जबकि श्री सिंगार एक अच्छे युवा मंत्री हैं। एकाएक उत्तेजित होकर बयानबाजी करना एक अच्छे नेता की निशानी नहीं है। वर्तमान कांग्रेस सरकार, बसपा, सपा एवं निर्दलीय विधायक के समर्थन से सुचारू रूप से चल रही है। प्रदेश के मुखिया श्री कमलनाथ जनहित, किसानहित एवं चुनाव में किए गए वादों को अमलीजामा पहनाने में निरंतर गतिशील है। हाल ही में केंद्रीय मोटरयान अधिनियम मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने लागू न करके बड़ा फैसला भी जनहित में लिया है। जिससे आमजन मैं सकारात्मक प्रतिक्रिया आई है। प्रदेश के कुछ बड़बोले मंत्रीगण किसी ना किसी कारण से अपनी लय और दिशा निर्धारित नहीं कर पा रहे हैं। क्या सोचे और क्या बोलें कौन सा प्रदेश के दिग्गज नेता खुश होगा और कौन सा नाराज होगा, जिससे यहां प्रतीत होता है कि मंत्रियों को ही मध्यप्रदेश सरकार की अस्थिरता का भय सता रहा है। यह समझ नहीं पा रहे हैं कि नगर पालिक निगम, नगर पंचायत, जनपद पंचायत, कृषि मंडी तथा कॉपरेटिव बैंक के चुनाव निकट भविष्य में लगातार होना है। यदि स्वयं के बेबाकी से कांग्रेस पार्टी को नुकसान पहुंचाना है तो इन कांग्रेसियों को देखने वाला अब नई दिल्ली हाईकमान के सिवा कुछ नहीं है। यदि अब सत्ता में विमुख हो गए थे तो आने वाले दिनों में भाजपा का सामना करना तेरी खेर होगा। सलामत तो इसी में है कि सारे छोटे-मोटे गिले-शिकवे को नजर अंदाज कर के दिग्गज नेताओं पर छींटाकशी ना करते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ को सरकार चलाने में अपनी ताकत झोंक दें।


 


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