अभिव्यक्ति की आजादी पर खतरे और किताबों पर पढ़ने वाले संकट के बादल मंडरा रहे हैं

साहित्य संस्कृति और अभिव्यक्ति के वैचारिक तीन दिवसीय सत्र में प्रगतिशील लेखक संघ का 17वां राष्ट्रीय अधिवेशन जयपुर में संपन्न



देवास। आज सारे मुल्क में जो हालात है, वह आजादी के पहले कभी नहीं थे। देष बदल गया है, भारतीयता की पहचान खत्म हो रही है। भारत धर्मनिरपेक्षता की जान पहचान भी खोता जा रहा है। भारत ने जो सपने देखे थे वे अब नहीं है। देश में फांसीवाद और पूंजीवाद का खतरा बढ़ रहा है। भारत के लोकतंत्र और संविधान पर भी खतरे मंडरा रहा है। अभिव्यक्ति की आजादी भी गहरे संकट में है। हमें फांसीवादी ताकतों से लडने के लिए आंदोलित होना पड़ेगा। यह बात प्रगतिशील लेखक संघ संघ के 17वें अधिवेशन जयपुर के तीन दिवसीय सम्मेलन में राष्ट्रीय अध्यक्ष पुन्नीलन ने अपने भाषण में कही। 
    उद्घाटन सत्र अभिव्यक्ति के खतरे उठाने होंगे विषय पर बोलते हुए भाषाविद एवं विचारक गणेश एन. देवी ने कहा कि साहित्य खुद अपने आप में संघर्ष कर लड़ाई लड़ रहा है। आज कहीं साहित्यकर्मी जेल में बंद है तो कोई मारे जा रहे हैं। अभिव्यक्ति की विरासत मिटाई जा रही है तो मंदी के दौर में रोजगार गायब होते जा रहे हैं। राष्ट्रीय कार्यकारिणी के अध्यक्ष अख्तर जावेद ने कहा कि अदबगार, कलमकार साहित्यकारो ने समाज को बदला है। लेखक कलम का इस्तेमाल करके शहीद भगतसिंह की मशाल की रोशनी फैलानी है। प्रलेस के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. सुखदेव सिंह सिरसा ने बोला कि हिंदुत्व के नाम पर गंगा-जमुना तहजीब को खतरा फैल रहा है तो दूसरी ओर विकास के नाम से देश उजड़ रहा है। वही हमें अर्बन लार्जिंग से डरा धमकाकर भाषा का राष्ट्रवाद भी परेशान किया जा रहा है। पूर्व राष्ट्रीय महासचिव राजेंद्र राजन ने बताया कि रचनाकर्मियो को ऐकांतवास से निकलकर सार्वजनिक मंच पर अपनी आवाज मुखर करनी होगी। मध्यप्रदेश के राजेंद्र शर्मा, विनीत तिवारी ने भी सत्र को संबोधित किया। सत्र को आगे बढ़ाते हुए पंरजाय गुहा ठाकुर ने अपने उद्बोधन में कहा कि पूरी दुनिया इंटरनेट में कैद है। देश में लोगों से ज्यादा सिम हो गई है जो झूठ का पुलिंदा धड़ेल से बिक रहा है। फिल्मकार उदय प्रकाश ने कहा कि पूरी राजनीतिक घृणास्पद, और हास्यास्पद होकर रह गई है। कुलपति ओम थानवी ने कहा कि मैं चुप्पी तोडने के लिए लिए कहता हूं तो बोलने के लिए उकसाता हूं। घास चरने के लिए नही। हमें इस वक्त बोलने की बहुत जरूरत है। बाल मुकुल सिन्हा ने कहा कि आज राजनीतिक संकट है तो पूंजीवाद और लोगो को पढने का संकट भी। वीरेंद्र यादव ने कहा कि लेखकों की किताबों पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है। जबकि राजनेता से जुड़े रचनाकारों पर बेन नहीं लगा। विभूतिनारायणराव ने वर्तमान कानून के संशोधनों पर तंज कसा। रंगकर्मी रमा पांडे ने कहा कि आज नौजवानों को कलम सौपना चाहिए, ताकि वे अत्याचारी ताकतो से लड़ा जा सके। विभिन्न सत्रों का संचालन ईशमधु तलवार, शैलेंद्र शैली और सारिका ने किया। आभार प्रेमचंद गांधी ने माना। अधिवेशन में प्रतिनिधित्व करने वाले मेहरबान सिंह ने बताया कि प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय अधिवेशन के तीन दिवसीय सत्रो में समाज में शोषित, पीडितजनों के उत्पीडन पर परिचर्चा हुई। इन वैचारिक चिंतन के साथ काव्यपाठ, पुस्तक विमोचन, सांस्कृतिक नाट्य पुस्तक मेले, सांस्कृतिक मार्च रैली जैसे कार्यक्रम हुए। इप्टा के साथियों ने लोकगीत की प्रस्तुति दी। इस सम्मेलन मे देश के 26 प्रांतों के 600 संस्कृत कर्मियों ने शिरकत की। इसमें जनवादी लेखक संघ, दलित लेखक संघ, इप्टा और ज.स.म. संगठन के प्रतिनिधियो ने हिस्सेदारी की। राष्ट्रीय सम्मेलन में प्रतिभागी रहे तनिष्का शिव ने अपने अनुभव साझा कर जानकारी दी कि भारतीय प्रगतिशीलता के नरेंद्र सक्सेना, चेहरे कुमार अंबुज, प्रज्ञा रावत, हरिओम राजोरिया, अनिल करमेले, श्याम प्रांत हसुले, विनय कश्यप, परमानंदसिंह, सुमेर परमेश्वर, वैष्णवी कृष्ण ठाकुर, हेमंत कुमार राय, विजय राही, जितेंद्र धीरे, प्रेमचंद गांधी, शैलेन्द्र शैली, सारिका श्रीवास्तव आदि कवि एवं कवियित्रियो ने कविता पढ़ी।


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