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संस्था परवाजे कलम द्वारा मासिक काव्यगोष्ठी और नशिस्त सम्पन्न


देवास। चमक चुभती है, आँखों को अंधेरा रास आता है, सुबह को छीन लो मुझसे मगर ये शाम रहने दो। फकत हममे शराबी सी अदा ना आएगी लेकिन, बहकने दो मचलने, दो नजर में जाम रहने दो जब देवास शहर के युवा कवि और शायर प्रवीण मिश्रा ने ये पंक्तियाँ पढ़ी तो महफि़ल ने आसमान की बुलंदियों को छू लिया। आयोजन था गंगो जमनी साहित्यिक संस्था परवाजे कलम की मासिक काव्यगोष्ठी और नशिस्त का जो कालोनी बाग में संस्था कार्यालय में आयोजित की गई। नशिस्त की शुरुआत शायर मोईन खान मोईन ने नाते पाक से की और कवि संजय सरल ने माँ सरस्वती की वंदना कर शब्द सुमन प्रस्तुत किये। महफि़ल में आए बेहतरीन तरन्नुम के मालिक युवा शायर जनाब राजेश राज ने कहा - सभी बदला हुआ सब कुछ मुझे ठहरा सा लगता है , सुनो तुम रूठ जाती हो तो मुझको ऐसा लगता है। तहद के बेमिसाल शायर देव निरंजन ने कहा- पहली नजर के प्यार से बचकर चलता हूँ, अब खंजर की धार से बचकर चलता हूँ। एक मुखोटा जिसमे सौ सौ चेहरे हो, मैं ऐसे किरदार से बचकर चलता हूँ। शिरी जुबां के नायब गजलकार मोईन खान मोईन ने कहा - इक लम्हा नहीं जिसमे तेरी बात नहीं है, ये बात अलग है की मुलाकात नहीं है। छत पर उतर आया है वो बेवक्त ये पागल, इस चाँद को समझाओ अभी रात नहीं है। युवा शायर जय प्रकाश जय ने खूबसूरत तरन्नुम पेश करते हुए कहा- तेरा दीदार समंदर का सफर लगता है, तिश्नगी और न बढ़ जाए ये डर लगता है। शोखियाँ भीगी सी खुशबू पे ये भीगा सा मन , मौसम ए इश्क की बारिश का असर लगता है। छोटी बहर में शायरी को उरुज पर पहुंचाते हुए युवा शायर संजय सरल ने कहा- आपकी बेरुखी का ये आलम , चाँद रोया है रात भर तनहा। उड़ चुके हैं जवाँ परिंदे सब ,ऐ श्सरल्य रह गया शजर तनहा।  कवि रणजीत राही ने कहा - जब तेरी आँख ही समंदर है , कहीं और डूबने की जरुरत कहाँ। तुम्ही ने चुराया है राही का दिल, किसी और में इतनी जुर्रत कहाँ। देर रात तक चली काव्यगोष्ठी में कई श्रोताओं ने शायरी और कविताओ का भरपूर आनंद लिया। काव्यगोष्ठी का सञ्चालन जय प्रकाश जय द्वारा किया गया। कार्यक्रम के अंत में शायर राजेश राज ने सभी शायरों और कवियों का आभार व्यक्त किया। यह जानकारी संस्था के नायब सदर देव निरंजन द्वारा दी गई।


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