आत्मा से परमात्मा बनने के लिये जरूरी है सिद्धचक्र मण्डल विधान 


इंद्र इंद्राणियों ने सिद्ध चक्रमण्डलजी पर 256 अर्ग समर्पित किए, सिद्ध प्रभु की आराधना जारी 
देवास। आत्मोत्थान की चरम अवस्था को परमात्मा कहा जाता है। परमात्मा पाप पुण्य के परे होते हैं वह न इंद्रिय जन्य है और न ही शास्त्रों के अभ्यास से पाई जाती है इसलिये आत्मा कर्मबंध के कारण परमात्मा नहीं बन पाती है। आगम के अनुसार अरिहंत सगुण सकल परमात्मा है। और सिद्ध निगुर्ण निकल परमात्मा है। इसलिये आत्मा को तप ध्यान से कर्म मुक्त कर सिद्ध परमात्मा बनाया जा सकता है। 
हम सिद्ध बनें इसलिये ही सिद्ध समूह की उपासना के लिये सिद्ध चक्र विधान के माध्यम से आराधना की जाती है। इस मण्डल विधान से समस्त लौकि क सुखों की प्राप्ति तो सहज ही होने लगती है लेकिन परालोकिक सुख प्राप्त नहीं हो पाते। जैसे किसान अनाज प्राप्ति के लिये बीज बोता है लेकिन फल के साथ भूसा रूपी कर्म भी प्राप्त होते हैं, जिनकी निर्जरा जरूरी है ये उद्गार अलकापुरी स्थित श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में पं.श्री संजय जैन नेे अपने उद्बोधन में कहे। दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति की परम्परा के अनुसार विगत दिनों से चल रहे श्री सिद्ध चक्र महामण्डल विधान के छटे दिवस क्रम से सभी इंद्र इंद्राणी एवं श्रावकजनों द्वारा बारी बारी से 256 अर्ग चढ़ाकर सिद्ध भगवान की आराधना भक्तिपूर्वक की गई। मंदिरजी में प्रात: 6 बजे से श्रीजी के कलशाभिषेक, शांतिधारा, सिद्धचक्र मंडल विधान एवं जाप किए जा रहे हैं। रात्रि 7 बजे से आरती, भक्ति, शास्त्र प्रवचन हो रहे हैं। इस संपूर्ण सिद्धचक्र मण्डल विधान के पुण्र्याजक चंद्रकांता दोराया परिवार तथा सौधर्म इंद्र बनने का सौभाग्य जयकुमार दोराया को तथा शांतिधारा करने का परम सौभाग्य तिलोकचंद्र जी सांवला रामगंज मंडी, लालचंद जी जैन देवास को प्राप्त हुआ। इस मण्डल विधान में रामगंज मंडी, सूरत, पालिया आदि कई जगहों से पधारे साधर्मिक बंधुओं ने पुण्य लाभ लिया। 


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