लड़कियों पर अत्याचार का धर्म

पाकिस्तान में दो हिंदू लडकियों को अगवा करके शादी करने और जबरन धर्म परिवर्तन कराने की खबर इस वक्त भारत में सुर्खियों में बनी हुई है। खासकर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के इस मामले में दखल देने से चर्चा और तेज हो गई है। विदेश मंत्री ने पाकिस्तान में भारतीय उच्चायुक्त से इस मामले में रिपोर्ट मांगी। जिस पर पाकिस्तान के सूचना मंत्री चौधरी फ़वाद हुसैन ने सुषमा स्वराज को लिखा कि यह पाकिस्तान का आंतरिक मामला है और हमारे लिए अल्पसंख्यक भी उतने ही अनमोल हैं। इसके बाद दोनों देशों के मंत्रियों के बीच ट्विटर पर कुछ और कड़वी बातें हुईं। मोदी का न्यू इंडिया बनाम इमरान का नया पाकिस्तान का तुलनात्मक अध्ययन शुरु हो गया है। अच्छी बात यह है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने पंजाब और सिंध की सरकार को साथ मिलकर लड़कियों की तलाश का आदेश दिया है। इससे पहले पाकिस्तान के कानून की धारा 365 बी (अपहरण. जबरन शादी के लिए महिला का अपहरण). 395 (डकैती के लिए सजा), 452 (चोट पहचाने. मारपीट, अनधिकत रूप से दबाने के उद्देश्य से घर में अनाधिकार प्रवेश) के तहत पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरु कर दी है। यानी कानून अपना काम कर रहा है। सषमा स्वराज ने विदेश में रहने वाले भारतीयों की पिछले पांच सालों में कई बार मदद की है। पाकिस्तान में दो लड़कियों के अपहरण पर अगर वे चिंता कर रही हैं, यह भी उनकी संवेदनशीलता को दिखाता है। लेकिन सवाल ये है कि अगर ये लड़कियां हिंदू न होकर मुस्लिम होतीं, क्या तब भी सुषमा जी को इतनी ही चिंता होती? पाकिस्तान में लड़कियों और महिलाओं पर अत्याचार के कई मामले पिछले पांच सालों में हुए हैं। क्या तब सुषमा जी ने इस तरह की कोई रिपोर्ट मांगी? सोशल मीडिया पर सनसनी फैलाने वाली कंदील बलोच की हत्या उनके ही भाई ने की थी, क्या तब सुषमा स्वराज ने कोई चिंता जतलाई थी? और पाकिस्तान ही क्यों भारत समेत दुनिया के तमाम देशों में लड़कियां, महिलाएं आए दिन ऐसे अत्याचारों का शिकार होती हैं, तो भारत की विदेश मंत्री क्या हर देश में भारतीय राजदूत या उच्चायुक्त से ऐसी रिपोर्ट मांगती हैं? नाइजीरिया में बोकोहराम या सीरिया में आईएस के आतंकवादी लड़कियों को मध्ययुग की तरह गुलाम बनाकर रखते हैं, इस तरह की दिल दहलाने वाली खबरें आती ही रहती हैं, तब सुषमा स्वराज भारतीय विदेशमंत्री की हैसियत से क्या एक्शन लेती हैं, यह जानने की उत्सुकता है। लड़कियों का अपहरण, उनका बलात्कार, जबरन शादी, वेश्यावृत्ति में धकेलना, उनका मानसिक उत्पीडन, छेडछाड़ या धर्मपरिवर्तन जैसे अपराधों की हर हाल में निंदा होनी चाहिए। और यह हर देश की सरकार का दायित्व है कि वह लड़कियों के लिए सुरक्षित माहौल बनाए। यह बात जितनी पाकिस्तान पर लागू होती है, उतनी ही भारत पर भी और दुनिया के तमाम देशों पर लागू होती है। लेकिन लड़कियों के साथ अपराध को अगर धर्म के चश्मे से देखा जाए, तो यह भी घोर निंदनीय है। जोर-जबरदस्ती का शिकार चाहे हिंदू लड़की हो या मुस्लिम लड़की हो या किसी और धर्म की, उसकी पीड़ा एक जैसी ही होगी। और अगर राजनीति उनके जख्मों पर धर्म का नमक छिड़कती है, तो उससे दर्द और बढ़ेगा, कम नहीं होगा। सुषमा स्वराज ही क्यों, दुनिया की हर संवेदनशील महिला चाहेगी कि पाकिस्तान में जिन लड़कियों पर अत्याचार हुआ है, उन्हें जल्द से जल्द न्याय मिले। वहां की सरकार भी इस बात की चिंता कर रही है और कोई देश किसी अन्य देश के आंतरिक मामलों में दखल दे, यह सही नहीं है। बेहतर हो कि हम अपने देश में लडकियों. अल्पसंख्यकों. दलितों. गरीबों के लिए ऐसा माहौल बनाएं कि बाकी देशों के लिए मिसाल बन सके। और आखिर में पाकिस्तान की एक और खबर कि भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की 88वीं शहीदी दिवस पर लाहौर के शादमान चौक का नाम बदलकर भगत सिंह चौक कर दिया गया। पहले यह चौक जेल का हिस्सा था, और यहीं पर 23 मार्च 1931 को अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें फांसी पर चढ़ाया था। इम्तियाज राशिद कुरैशी द्वारा संचालित भगत सिंहमेमोरियल फाउंडेशन की पहल पर इस चौक का नाम बदला गया है।


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