समाज की सुरक्षा संत करता है तो देश की सुरक्षा सैनिक

कृतज्ञता, करुणा एवं कल्पांत के आँसू संसार को आपके चरणों में झुका सकता है- श्री रत्नसुंदर सुरि



देवास । अगर आपके पास तीन प्रकार के आँसू है तो सारा संसार आपके चरणों में झुक जाएगा। इन तीन आँसू में पहला है कृतज्ञता का आँसू, करूणा का आँसू, कल्पांत का आँसू । हर दुष्कर पाप का प्रायश्चित हो सकता है लेकिन शास्त्र बताते हैं यदि आपने अपने जीवन में उपकारियों को भुला दिया। तो इस पाप का प्रायश्चित कभी नहीं हो सकताजिन लोगों से आपको कुछ लेना है वह तो याद रहता है लेकिन किसी उपकारी का ऋण चुकाना याद है क्या? मेरे प्रवचन का सबसे महत्वपूर्ण केन्द्र बिंदु प्रश्न है कि आपको क्या मिला यह मैं नहीं पूछता, लेकिन आपसे दुनिया को क्या मिला? यह जानना चाहता हूँ। आपको माता पिता, परिवार, सक्षम शरीर, ज्ञान और सद्गुण मिले लेकिन आपने दुनिया को क्या दिया? आपकी शिकायत रहती है मुझे देश ने क्या दिया? मैं पूछता हूँ आपने देश को क्या दिया। आपके नेचर पर राईट का सिगनेचर करने के लिए परिजन या दुनिया तैयार है क्या? यदि नहीं तो पीड़ा होना चाहिये कि आखिर मैने जीवन में प्राप्त क्या किया । वो आँसू वंदनीय है विषय पर विशाल धर्मसभा को उपदेशित करते हुए प्रवचनमाला के चतुर्थ दिवस यह बात पूज्य जैनाचार्य श्री रत्नसुंदर सुरीश्वरजी म.सा. ने कही। करूणा के आँसू की व्याख्या करते हुए आपने कहा कि किसी दुखी व्यक्ति को देखकर यदि हम व्यथित नहीं हुए और उसके आँसू पोछने का मन नहीं हुआ तो धिक्कार है हमारे जीवन को। संभवत हम सारे संसार का दुख दूर नहीं कर सकते हैं लेकिन शुरूआत तो अवश्य कर सकते हैं। लोगों के छोटे छोटे दुखों को दूर कर जो आनंद की प्राप्ति होगी वह आलौकिक आनंद होगा। धर्म करना अच्छा है लेकिन धार्मिक बनना मुश्किल है। धार्मिक बनना ही सच्चा धर्म है। अपना स्वयं का परिवार छोडकर देश के सभी परिवारों को अपना मानकर उनकी सुरक्षा करने वाले देश की सीमा के सैनिकों को कभी धन्यवाद या शुभकामना देने का मन हुआ है क्या? भारत क्रिकेट मैच हारता है तो हम गमगीन हो जाते हैं लेकिन सीमा पर किसी सैनिक के शहीद होने पर हमारी आँखों से अश्रु क्यों नही टपकते। समाज को बचाने का काम संत करता है तो देश को बचाने का काम सैनिक करता है। विकार युक्त आँखे, वासनायुक्त जीवन, पाप और अपराधयुक्त जीवन के प्रति पश्चाताप नहीं है तो हमारा मानव जीवन व्यर्थ ही है। क्यों संतान संतति एवं आहार प्रवृत्ति तो पशुओं के पास भी है लेकिन विवेक, बुद्धि मनुष्य को विरासत में मिली है। कहीं हम उसका दुरूपयोग तो नहीं कर रहे हैं। स्वयं के पाप दोष को देखकर यदि आत्मग्लानी एवं पश्चाताप और कल्पांत के आँसू आ गए तो समझो हमने स्वयं पर विजय प्राप्त कर ली है। हमारा शरीर एवं जीवन सिर्फ हमारी स्वयं की संपत्ति नहीं है, इस पर हमारे परिवार, समाज एवं देश का भी अधिकार है। हम व्यसन और पापयुक्त बनकर जीवन लीला तक समाप्त करने का दुष्यकृत्य कर लेते हैं। लेकिन उसके दुष्परिणाम के बारे में नहीं सोचते कि उसके पश्चात हमारे परिवार, समाज एवं देश को कितनी क्षति होगी। मैं यहाँ व्यक्ति को तीन प्रकार की मुक्ति दिलाने के लिए आया हूँ । यह मुक्ति है व्यसन मुक्ति, पाप मुक्ति और प्रमाद मुक्ति। आप व्यसन और पाप से मुक्त होकर प्रमाद आलस्य छोडकर स्वस्थ एवं ऊर्जावान तन मन से धर्म, परिवार, समाज और अपने राष्ट्र की सेवा करें। यही मेरा संदेश एवं अनुरोध है।


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