जमाने भर में मिलते है आशिक कई, जमाने भर में मिलते है आशिक कई, मगर मेरे वतन से खुबसूरत कोई सनम नहीं है...

26 जनवरी हम सभी देशवाशियों के लिए बहुत ही पवित्र पर्व है जो हमें याद दिलाता है कि हम सब विश्व के सबसे बड़े प्रजातंत्र देश के नागरिक हैं और स्वतंत्र हैं. गणतंत्र अथवा प्रजातंत्र का मतलब जिसमें राजकीय सुविधाओं के लिए सब सामान है। हम सब स्वतंत्र रहना चाहते हैं, प्रजातंत्र चाहते हैं. लेकिन यह प्रजातंत्र और स्वतंत्रता बहुत ही कठिन परिश्रम के बाद मिला है। भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों की कई वर्षों के संघर्ष, कड़ी मेहनत और कई जीवन न्योछावर करने के बाद भारत को 15 अगस्त 1947 को आज़ादी मिली. स्वतंत्रता के ढाई वर्ष बाद भारत सरकार ने स्वयं का सविधान लागु किया और भारत को एक प्रजातात्रिक गणतंत्र घोषित किया।  15 अगस्त 1947 में स्वतंत्रता मिलने के बाद संविधान सभा की घोषणा हुई और इसके लिए 9 दिसम्बर 1947 से कार्य आरम्भ कर दिया गया था. भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा संविधान सभा के सदस्य चुने गए थे. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, डॉ. भीमराव आंबेडकर, जवाहरलाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे. संविधान निर्माण में कुल 22 समितीयां थी, जिसमें प्रारूप समिति (ड्राफ्टींग कमेटी) सबसे प्रमुख एवं महत्त्वपूर्ण समिति थी और इस समिति का कार्य संपूर्ण 'संविधान का निर्माण करना था। 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन में कुल 114 दिन बैठक के बाद भारतीय संविधान खुबसूरत तैयार किया गया और संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को 26 नवम्बर 1949 को भारत का संविधान सुपूर्द किया गया, इसलिए 26 नवम्बर को भारत में संविधान दिवस इस बैठकों में प्रेस और के रूप में प्रति वर्ष मनाया जाता है. इस बैठकों में प्रेस और जनता को भाग लेने की स्वतन्त्रता थी. अनेक सुधारों और बदलावों के बाद सभा के 308 सदस्यों ने 24 जनवरी 1950 को संविधान की दो हस्तलिखित कॉपियों पर हस्ताक्षर किये. इसके दो दिन बाद सविधान 26 जनवरी को यह देश भर में लागू हो गया. 26 जनवरी का महत्व बनाए रखने के लिए इसी दिन संविधान निर्मात्री सभा द्वारा स्वीकृत संविधान में भारत के गणतंत्र स्वरूप को मान्यता प्रदान की गई। आज हम सभी भारतवाशी 70वां गणतंत्र दिवस मना रहे हैं. गणतंत्र दिवस के लिए 26 जनवरी ही तय किया गया क्यूकि, दिसम्बर 1929 में पंडित जवाहर लाल नेहरु की अध्यक्षता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन लाहौर में संपन्न हुआ जिसमें प्रस्ताव पारित कर इस बात की घोषणा की गई कि यदि ब्रिटिश सरकार 26 जनवरी 1930 तक भारत को स्वायत्तयोपनिवेश (डोमीनियन) घोषित नहीं करता है तो भारत ब्रिटिश साम्राज्य में ही स्वशासित इकाई बन जाता, अतः भारत अपने को पूर्णतः स्वतंत्र घोषित कर देगा. 26 जनवरी 1930 तक जब अंग्रेज सरकार ने कुछ नहीं किया तब भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस ने उस दिन भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के निश्चय की घोषणा की और अपना सक्रिय आंदोलन आरंभ किया. उस दिन से 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त होने तक 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता रहा। हमारे प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जिन्होंने कहा था, हमारे पूर्ण महान और विशाल देश के अधिकार को को हमने एक ही सविधान और संघ में पाया है जो देश में रहने वाले 320 लाख पुरुषों और महिलाओं के कल्याण की जिम्मेदारी लेता है। यह बहुत ही शर्म की बात है कि आज आजादी के इतने वर्षों के बाद भी हम अपराध, भ्रष्टाचार और हिंसा से लड़ रहे हैं. 1947 के पहले हमारा देश बाहरी लोगों के गुलाम था लेकिन आज के समय में राजनेता और कुछ भ्रष्ट अधिकारिओं ने अपने ओहदे का गुलाम बना लिया है. यदि देश का विकास चाहिए तो यहाँ के लोगों का विकास होना बहुत जरूरी है. इसके लिए हम सभी को आगे आना होगा. देश में फैले रहे भ्रष्टाचार को खत्म करना होगा। एक राष्ट्र, एक रैंक एक पेंसन के लिए भी यहाँ बहुत दिनों तक इंतजार करना पड़ा. टेलिकॉम इंडस्ट्री में बहुत दिनों तक रोमिंग के लिए पैसा भरना पड़ा. ऐसे में सिस्टम और सत्ता से क्या कहा जाये. आज भी देश भर में कहीं से भी गाड़ी खरीदकर कहीं नहीं चला सकते हैं. गाड़ी जिस राज्य से खरीदा गया है वहीं चला सकते हैं. देश में ऐसी कई समस्याएं है जिससे मिलकर लड़ना होगा।


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