एक कदम आगे राहुल
देश की राजनीति में गरीब और गरीबी एक बार फिर हाशिए से उठकर मुख्यधारा में दिखने लगे हैं। यूं हिंदुस्तान जैसे देश में गरीबों को देखने के लिए किसी खास चश्मे की जरूरत नहीं होती। अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक को जाति, धर्म के संदर्भो से अलग हटकर समझें तो अमीर अल्पसंख्यक 27 मंजिला महलनुमा निवासों में बसते हैं और बहुसंख्यक गरीब हर गली, हर मोड़, हर नुक्कड़, हर चौराहे पर जिंदा रहने के लिए संघर्ष करते देखे जा सकते हैं। आंकड़े भले ही कुछ भी कहें, लेकिन सामने यही नजर आता है कि हिंदुस्तान की आजादी के साल जैसे-जैसे बीतते जा रहे हैं, वैसे-वैसे सुविधाविहीन आबादी भी बढ़ती जा रही है। भोजन, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य, मनोरंजन हर क्षेत्र में जनसंख्या का बड़ा तबका बड़ी मुश्किलों से या तो अपना हक प्राप्त कर रहा है, या फिर इन अधिकारों से वंचित ही रह जा रहा है। इस वंचना को ही राजनीतिक दल अपने घोषणापत्र में प्रमुखता से स्थान देते हैं और इनके आधार पर चुनावी बाजियां जीतते हैं। 1971 में इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया था, कांग्रेस को तब आम चुनावों में 518 में से 352 सीटों पर जीत मिली थी। इस नारे का प्रयोग 5 वीं पंचवर्षीय योजना में किया गया था। इसमें निर्धनता उन्मूलन को योजना के प्रमुख उद्देश्य के रूप में स्वीकार किया गया था। इंदिरा गांधी के बाद राजीव गांधी ने भी गरीबी हटाओ का नारा लगाया था। 2014 के चुनाव में भाजपा ने भी कुछ बड़े वादे किए थे, जिसमें हर साल 2 करोड़ लोगों को रोजगार देना था, और काला धन वापस लाकर हरेक के खाते में 15-15 लाख देने जैसी बातें थीं। मोदीजी के सत्ता में आने के बाद जनता को पता लगा कि 15 लाख की बंधी मुट्ठी, खुलने पर खाक की थी। मोदीजी ने करोड़ों भारतीयों को न केवल झूठा आश्वासन दिया, बल्कि नोटबंदी, जीएसटी जैसे फरमानों से उनके जीवनयापन के संघर्ष को और कठिन बना दिया। अब अगले आम चुनाव सिर पर हैं और इससे पहले कि भाजपा गरीबों को लेकर कोई और चुनावी घोषणा करती, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक बड़ी घोषणा की है। उन्होंने छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक जनसभा में कहा- हम एक ऐतिहासिक फैसला लेने जा रहे हैं, जो दुनिया की किसी भी सरकार ने नहीं लिया है। 2019 का चुनाव जीतने के बाद देश के हर गरीब को कांग्रेस पार्टी की सरकार न्यूनतम आमदनी गारंटी देगी, हर गरीब व्यक्ति के बैंक खाते में न्यूनतम आमदनी रहेगी। उनकी यह घोषणा चुनाव से पहले एक और मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। बेशक अगर कांग्रेस ऐसा कर पाती है तो यह ऐतिहासिक फैसला होगा, लेकिन ऐसा नहीं है कि दुनिया की किसी सरकार ने ऐसा नहीं किया है। कई देशों में कमजोर आर्थिक वर्ग के लोगों के लिए ससम्मान जीने और जीवनयापन की कल्याणकारी योजनाएं अलग-अलग नामों से चलती रही हैं। भारत में भी मोदी सरकार से पहले यूपीए सरकार ने जो मनरेगा का फैसला लिया था, वह गरीबों और बेरोजगारों के हक में था। इस तरह राहुल गांधी के इस ऐलान को मनरेगा का ही उत्तरपाठ यानी अगला हिस्सा माना जा सकता है। फिलहाल इस घोषणा से राजनीति में खलबली मची हुई है, खासकर भाजपा में, क्योंकि अब राहुल गांधी को पप्पू, पप्पू कहते हुए भाजपा नेता भी ये मानने लगे हैं कि देश को कांग्रेसमुक्त करना असंभव है और इस बार चुनाव में मोदीजी के सामने राहुल गांधी होंगे। लिहाजा भाजपा ने न्यूनतम आमदनी पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। पूछा जा रहा है कि इस योजना को लागू करने के लिए धन की व्यवस्था कैसे होगी? योजना के लाभार्थी कैसे तय होंगे? गरीबी रेखा का निर्धारण क्या नए सिरे से होगा? 2012 के आंकड़ों के मुताबिक आबादी का 22 प्रतिशत देश में गरीबी रेखा से नीचे था, अब भी यह आंकड़ा आसपास ही होगा, ऐसे में 30-32 करोड़ लोगों के लिए न्यूनतम आमदनी की व्यवस्था कैसे होगी? ऐसे तमाम प्रश्न जायज हैं और इन्हें जो भी उठाए, योजना को लागू करने वाली सरकार को इसका जवाब देना ही होगा। लेकिन राहुल गांधी ने जो कहा है, वह असंभव भी नहीं है। सरकार अलग-अलग सब्सिडियों पर सालाना 5 सौ लाख करोड़ रुपए खर्च करती है। इसमें भी कई बार असल हितग्राही छूट जाते हैं और जो पहले से संपन्न रहते हैं, उन्हें गरीबों का हिस्सा मिल जाता है। अगर इन सब्सिडियों की जगह न्यूनतम आमदनी की गारंटी सच में दे दी जाए, तो हरेक नागरिक की जरूरत भी पूरी होगी, उसका हक भी उसे मिलेगा और सम्मान भी बना रहेगा। मनरेगा को लेकर भी इसी तरह के पूर्वाग्रह व्यक्त किए गए थे। साल भर न सही, सौ दिन ही सही, जहां भी मनरेगा ईमानदारी से लागू हुआ, उसका सही परिणाम देखने मिला। मनरेगा में एक तय आमदनी की जो व्यवस्था थी, वही विचार यूनिवर्सल बेसिक इनकम का भी है, यानी सरकार देश के हर नागरिक के लिए एक निश्चित आय की व्यवस्था करेगी और इसके लिए किसी तरह का काम करने अथवा पात्रता होने की शर्त नहीं रहती, मकसद केवल इतना है कि समाज के प्रत्येक सदस्य को जीवन-यापन के लिए न्यूनतम आय का प्रावधान होना चाहिए। है।
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