डिलीवरी के बाद महिला के गर्भाशय में छोड़ा कपड़ा, चौथे दिन बेहोश हो गई, जांच में मिला 52 गुना संक्रमण

बीमार व्यवस्था डीआरपी लाइन की गर्भवती महिला इंदौर में चार दिन आईसीयू में भर्ती करना पड़ा


खरगोन। जिला अस्पताल के मेटरनिटी वार्ड में नॉर्मल डिलीवरी के मामलों में जानलेवा लापरवाही थम नहीं रही है। ताजा मामले में डॉक्टरों ने नॉर्मल डिलीवरी के दौरान महिला के गर्भाशय में कपड़ा छोड़ दिया। तीसरे दिन छुट्टी के बाद घर पहुंची महिला चक्कर खाकर बेहोश हो गई। इंदौर के निजी अस्पताल में चार दिन तक मौत से लड़ने के बाद जान बची। जांच में 52 गुना संक्रमण फैल गया। ऐसे मामलों में सामान्यत-सात गुना तक संक्रमण शरीर सहन कर पाती है। __ परिजन ने खरगोन जिला अस्पताल के डॉक्टरों पर लापरवाही के आरोप लगाते हुए जिम्मेदार डॉक्टरों पर कार्रवाई की मांग की है।  डीआरपी क्षेत्र निवासी रूपाली पति अमित नरवरिया (27) को पेट दर्द होने पर 31 दिसंबर को जिला अस्पताल लाए। सुबह 8 बजे उसे लेबर रूम में नार्मल डिलीवरी हुई। 2 जनवरी को रूपाली को घर ले गए। पति अमित के मुताबिक रूपाली को सुविधाघर में चक्कर आए और बेहोश हो गई। तत्काल डॉक्टरों के पास ले गए। उन्होंने दर्द की गोलियां दी। घर पहुंचे तो गर्भाशय से कपड़ा निकल आया। हम निजी अस्पताल गए। यहां भर्ती किया। जांच हुई। गंभीरावस्था में डॉक्टरों ने इंदौर रैफर कर दिया। चोईथराम अस्पताल में आईसीयू में भर्ती किया। यहां सोनोग्राफी व अन्य जांचें हुई। चार दिन तक मौत से लड़ी। एक लाख रुपए से ज्यादा इलाज पर खर्च हो गए। मेटरनिटी में संक्रमण क ध्यान नहीं रखा जाता है। यहां लेबर रूम से लेकर ओटी तक में गर्भवती महिला व नवजात को संक्रमण होता है। स्टाफ नर्स ग्लब्स से लेकर एप्रिन तक नहीं पहनते हैं। औजार भी पुराने हैं। उन्हें क्लोरिन साल्यूशन के पानी में आधा घंटा डालना चाहिए। इसके बाद सर्फ व साबून के ब्रश से धोना चाहिए हैं। इसका ध्यान नहीं रखा जाता है। एक सप्ताह में फ्यूमिकेशन भी जरूरी है। रूपाली की कल्चर एंड सेंसेटिव रिपोर्ट में खुलासा हुआ। डॉक्टरों ने 52 गुना संक्रमण बता दिया। ऐसे मामलों में आमतौर पर 6-7 प्रतिशत संक्रमण हो जाता है। इस केस में पल्स 170-180 रही। जबकि सामान्य मरीज की 90-100 तक होती है। गर्भाशय में बाहरी कपड़े के कारण दो तरह के बैक्टिरिया पनपे। पस सेल्स 10 से 12 ग्राम निकला। साथ ही सोनोग्राफी रिपोर्ट में 113 एनएल लिक्विड मिला। परिजन ने बताया डिलीवरी के दौरान स्टाफ ने ब्लीडिंग के दौरान कपड़ा रखा। ब्लीडिंग रुकने के बाद टांके लगा दिए। उन्होंने कपड़ा गर्भाश्य में ही छोड़ दिया। उसी दिन यह सामने आया था कि दो अन्य महिलाओं के गर्भाशय में भी कपड़ा छोड़ दिया था। उन्होंने भी डॉक्टरों की शिकायत की। तीनों मामलों की जांच होना चाहिए। मेटरनिटी वार्ड में सबसे ज्यादा मरीज आते हैं। यहां एक दिन में 30 से 40 महिलाएं भर्ती होती है। पांच से सात मामलों में लापरवाही व इलाज में देरी मिलती है। साथ ही मरीज के कारण कोई परिजन शिकायत भी नहीं करते हैं, क्योंकि यदि शिकायत हुई तो फिर डॉक्टर से लेकर स्टाफ तक उससे अभद्र व्यवहार व सहयोग नहीं कर ताने मारते हैं। कसरावद तहसील के बोथू की प्रीति हेमेंद्र (28) ने 26 दिसंबर को लेबर रूम में ही दम तोड़ दिया था। परिजन के आरोप है जैसे ही प्रीति को इंजेक्शन लगाया उसने हलचल बंद कर दी। बाद में डॉक्टरों ने मौत होने की जानकारी दे दी। नवजात व महिला दोनों की मौत हो गई। शिकायत पर पुलिस व विभागीय जांच शुरू हुई है।


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