साप निकलने के बाद लकीर पीट रहे नेताजी
- हेमंत शर्मा (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
साप निकलने जब बार-बार सर्वे में स्पष्ट हो गया था की मंत्री और विधायक किसी हालत में नहीं जीतेंगे, उसके बाद भी मंत्री और विधायक ने वहीं से टिकट लिया जहां सबसे ज्यादा नाराजगी थी। पूरे प्रदेश में यही हालात रहे तो हमारे देवास जिले में मंत्री रहे दीपक जोशी को पहली बार चुनाव लड़ रहे कांग्रेसी नेता मनोज चौधरी हेमंत शर्मा, देवास ने बड़े अंतर से हरा दिया। दूसरा सोनकच्छ से पूर्व मंत्री सज्जन वर्मा ने भी राजेंद्र वर्मा को आसानी से हरा दिया। प्रदेश में इन 2 सीटों पर सभी की नजर थी। हाटपिपलिया से दो बार विधायक रहे मंत्री दीपक जोशी का पहले भी इतना ही विरोध था, परंतु वे कम मत से चुनाव जीत गए थे। मंत्री दीपक जोशी ने क्षेत्र में विकास कार्य तो किए थे, परंतु उनके झूठे वादे और व्यवहार से लोग नाराज दिखे। फिर तीन बार के विधायक रहने के बाद भी उनकी टीम कमजोर रही, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी के पास केवल व्यवहार मिलन सारिता और टीम के अलावा कुछ भी नहीं था। मनोज चौधरी ने अपने पिता जिनको दीपक जोशी ने हराया था, का बदला ले ही लिया। इधर सोनकच्छ में दो बार विधायक रहे राजेन्द्र वर्मा का व्यवहार ही हार का कारण बना। क्षेत्र में विपक्ष में रहने के बाद भी सज्जन वर्मा लगातार सक्रिय रहे। अपने भाई अर्जुन वर्मा की दो बार हार के बाद भी हार नहीं मानी। ग्रामीण जनता से सतत संपर्क और राजेंद्र वर्मा का घोर विरोध ही इनकी जीत का कारण रहा। कहीं तो यह भी कहा जा रहा है कि हाटपिपलिया और सोनकच्छ से दीपक जोशी और राजेंद्र वर्मा हारे हैं ना कि मनोज चौधरी सज्जन वर्मा जीते हैं। अब दोनों सीट पर भाजपा मंथन कर रही है। पछताने से कुछ नहीं होता, क्या सर्वे झूठा था? कार्यकर्ता झूठे थे? जब विरोध था तो टिकट की क्यों दिया? हाटपिपलिया से तो दीपक जोशी नैतिकता से हार मान कर फिर क्षेत्र में चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं, परंतु राजेंद्र वर्मा घ घर के हो गए। ऐसा ही मंथन कांग्रेस में देवास, कन्नौद, खातेगांव और बागली में चल रहा है। देवास में पूर्व महापौर जय सिंह ठाकुर केवल अपने दम पर चुनाव लड़े। इनका चुनाव प्रबंधन इनकी हार का कारण बना, तो सब से बड़ी बात की सामने प्रत्याशी देवास राजमाता गायत्री राजे पवार का होना था। गायत्री राजे पवार के साथ एक अच्छी टीम और सफल चुनाव प्रबंधन के साथ देवास विकास का मुद्दा रहा। उनके विरोधियों ने हराने में कोई कसर नहीं छोड़ी, परंतु कम समय में राजनीति में परिपक्व गायत्री राजे पवार और उनके पुत्र महाराज विक्रम सिंह पवार ने हर मोर्चे पर अच्छी लीड के साथ जीत को कायम रखा। कन्नौद – खातेगांव से आशीष शर्मा ने भी अपनों से ही लड़ाई लड़कर अकेले अपनी टीम के साथ जीत हासिल की। यहां कांग्रेस ने कैलाश कंडल जैसे जीतने वाले नेता को छोड़ ओम पटेल को मौका दिया, परंतु ओम पटेल भाजपा के बागियों का भी लाभ नहीं उठा सके। आशीष शर्मा के सरल, सहज व्यवहार ने उनकी जीत आसान कर दी। बागली में भाजपा ने दो बार जीते विधायक चंपालाल देवड़ा का टिकट काटकर नए चेहरे पहाड़ सिंह कन्नौजे को आजमाया, तो कांग्रेस में जिलाध्यक्ष श्याम होलानी के खास कमल वास्कले को दूसरी बार मौका दियाकांग्रेस जिला प्रमुख होलानी पूरे समय इस सीट को जिताने में ही लगे रहे, पर उनकी किस्मत में हार ज्यादा है। वही हुआ पहाड़सिंह की पहाड लीड से वास्कले हार गये। बीजेपी का नया चेहरा काम कर गया। अब यहा कांग्रेस हार के कारण पर मंथन कर रही है। क्या होलानी का प्रबंधन कमजोर रहा? पूरे जिले में प्रचार की जगह बस बागली तक सीमित हार का हार भी होलानी को ही पहनना चाहिये। जिले में सज्जन वर्मा, जयसिंह ठाकुर, मनोज चौधरी, ओम पटेल ने चुनाव अपने दम पर लड़ा। प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर के बाद भी जो चुनाव हारे उनका कमजोर प्रबन्धन बड़ा कारण रहा। जो भाजपा के विधायक सत्ता विरोधी लहर में अच्छे मत से जीते, उनकी जीत में कुशल प्रबन्धन, लगातार विधानसभा में सक्रियता और विकास कार्य ही प्रमुख कारण रहे। अब हार का मंथन मतलब सांप निकलने के बाद लकीर पीटना ही है। -
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