.. तो प्रदेश में कांग्रेस बनाएगी सरकार!
हर जिले में सीटें जीतते हुए दिखाई दे रही कांग्रे
• लम्बे इंतजार के बाद घोषित हुई सूची में बड़े नाम, भाजपा किसी तरह सरकार बचाने की जुगत में
(मध्यप्रदेश में 52 जिले और 230 विधानसभा सीटें हैं। औसत देखा जाए तो हर जिले में 5 विधानसभा सीटें हैं। अब कांग्रेस का सीधा आंकलन यह कहता है कि प्रदेश के हर जिले से भाजपा को कड़ी टक्कर कांग्रेस से मिल रही है और अब हालात ऐसे बन रहे हैं कि जिन जिलों में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला था, वहां कांग्रेस के प्रत्याशी जीतते हुए दिखाई दे रहे हैं। सिर्फ इंदौर, उज्जैन और देवास की स्थिति देखी जाए तो साफ है कि कांग्रेस को फायदा हो रहा है।)
मध्यप्रदेश में चुनावी बिगुल बजने के साथ ही कांग्रेस को एक बार फिर से सरकार बनाने का भरोसा है। हालांकि सरकार बनेगी या नहीं ये तो परिणाम ही बताएंगे, लेकिन कांग्रेस को गुजरात के अपने परफॉर्मेंस से ये उम्मीद तो जरूर है कि मध्यप्रदेश में सरकार बनाने का उसका सपना परा हो सकता है। दिग्विजयसिंह पूरी तरह से प्रचार से किनारा कर चुके हैं और कमलनाथ, सिंधिया सहित अन्य कई नाम प्रचार मैदान के स्टार बन चुके हैं। ऐसे में कांग्रेस को एक उस अनुमान का भी बहुत सहारा है, जो बीजेपी को हर जिले में नुकसान बता रहा है। बीजेपी अनुमानों के हिसाब से अगर हर जिले में नुकसान उठाती है, तो कांग्रेस को सरकार बनाने में ज्यादा दिक्कत नहीं होनी चाहिए। अगर कांग्रेस की उम्मीद का विश्लेषण किया जाए तो साफ होगा कि आखिर सरकार बनाने का उसका सपना कैसे पूरा होता दिख रहा है। मध्यप्रदेश में 52 जिले और 230 विधानसभा सीटें हैं। औसत देखा विधानसभा सीधा देखा जाए तो हर जिले में 5 विधानसभा सीटें हैं। अब कांग्रेस का सीधा आंकलन यह कहता है कि प्रदेश के हर जिले से भाजपा को कड़ी टक्कर कांग्रेस से मिल रही है और अब हालात ऐसे बन रहे हैं कि जिन जिलों में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला था, वहां कांग्रेस के प्रत्याशी जीतते हुए दिखाई दे रहे हैं। यदि यह एक अंदाजा सही साबित होता है तो कांग्रेस 100 सीटों को बड़ी आसानी से पार कर लेगी। सिर्फ इंदौर, उज्जैन और देवास की स्थिति देखी जाए तो साफ है कि कांग्रेस को फायदा हो रहा है। मसलन देवास जिले में पांच विधानसभा सीटें हैं और 2013 के चुनाव में पांचों सीटों पर भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी जीते थे। अब देवास जिले की दो सीटों पर कांग्रेस जीतने की स्थिति में है। इनमें भी सोनकच्छ ऐसी सीट है, जिसको कांग्रेस के लिए सबसे ज्यादा आसान माना जा रहा है। यहां वर्तमान विधायक राजेंद्र वर्मा का भारी विरोध है और कांग्रेस से प्रत्याशी भी राष्ट्रीय नेता सज्जन वर्मा हैं। ऐसे में यह सीट कांग्रेस निकाल सकती है। दूसरी तरफ हाटपीपल्या सीट पर यदि मनोज चैधरी को टिकट दिया जाता है, तो यहां भी कांग्रेस की पकड़ मजबूत दिखाई देती है। इसी तरह इंदौर की देपालपुर और सांवेर सीटों की है। इंदौर की राउ विधानसभा सीट पर कांग्रेस के कद्दावर युवा नेता जीतू पटवारी फिलहाल विधायक हैं। अगर देपालपुर और सांवेर की सीटों के साथ कैलाश विजयवर्गीय के कब्जे वाल महू विधानसभा सीट को भी देखा जाए तो कांग्रेस कम से कम तीन से चार सीटों पर काबिज हो सकती है। इंदौर शहर की विधानसभा नंबर तीन भी ... कांग्रेस के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकती है। इसी तरह पांच नंबर सीट पर भी वर्तमान विधायक की हालत ठीक नहीं बताई जा रही है। कुल मिलाकर मध्यप्रदेश के कई जिलों में इंदौर और देवास जैसे हालात निलीयोजनानोकीय बनते दिखाई दे रहे हैं। अब कांग्रेस के सामने सिर्फ और सिर्फ एक ही समस्या है और वह है वोट प्रतिशत की। जी हां यह बात अजीब जरूर लगेगी, लेकिन पिछले आंकड़े कहते हैं कि जब जब वोट प्रतिशत बढ़ा है, भाजपा बड़े अंतर से चुनाव जाती है। इस संदर्भ में पिछले दो चुनावों के आंकड़ों पर गौर कीजिए
पारावर विधानसभा चुनाव 2008
वोट प्रतिशत - 69.28 भाजपा - 143 कांग्रेस - 71 बसपा - 07 भाजश – 05 सपा - 01 निर्दलीय - 03
भाजपा - 37.64 प्रतिशत कांग्रेस – 32.89 प्रतिशत विध
|चुनाव 2013 वोट प्रतिशत _ 7207 नाराजगी भाजपा - 165 कांग्रेस - 58 बसपा - 04 निर्दलीय - २
मत प्रतिशत में जीत-हार का गणित
अब इन आंकड़ों को देखा जाए तो साफ है कि वोट प्रतिशत बढ़ते ही भाजपा को बड़ा फायदा मिलने लगता है। ऐसे में कांग्रेस को यही उम्मीद होगी कि मतदान का प्रतिशत प्रदेशभर में कम रहे। सिर्फ देवास विधानसभा को देखा जाए तो यह बात एकदम स्पष्ट हो जाएगी। देवास विधानसभा चुनाव 2013 में मतदान प्रतिशत 71.11 था, तो तत्कालीन विधायक तुकोजीराव पवार की जीत का अंतर 50119 वोट था। वहीं तुकोजीराव पवार के निधन के बाद 2015 में हुए उपचुनाव का वोटिंग प्रतिशत 64 था, तो भाजपा की जीत का अंतर 30778 था। साफ जाहिर है कि भाजपा जबजब जीत हासिल करती है, तब वोट का प्रतिशत ज्यादा ही रहा है। वोट प्रतिशत कम होने की सूरत में कांग्रेस का प्रदर्शन खुद-ब-खुद अच्छा हो जाता है। ऐसे में भाजपा की कोशिश यही है कि कैसे भी करके मत प्रतिशत को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाया जाए। वहीं कांग्रेस भी मत प्रतिशत को कम नहीं करना चाहती है, बल्कि यह चाहती है कि बढ़े हुए मत प्रतिशत में उसका शेयर ज्यादा हो जाए।
जाति और धर्म के फैक्टर हालांकि मध्यप्रदेश में जाति और धर्म के फैक्टर
पहले के चुनावों में बहुत ज्यादा या कहें निर्णायक रूप से प्रभावी नहीं रहे हैं, लेकिन इस चुनाव में जाति का फैक्टर खुलकर सामने आया है। किसान आंदोलन के बाद सरकार से नाराजी भी एक बड़ा फैक्टर है। साथ ही एट्रोसिटी एक्ट को लेकर भी दलित संगठन और सवर्ण संगठन दोनों की ही नाराजगी है।
केंद्र के निर्णयों पर व्यापारी नाराज
प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ रही है। भाजपा के पास मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चैहान के रूप में सबसे बड़ा और प्रदेश का सबसे ज्यादा सर्वमान्य नेता है, लेकिन केंद्र सरकार की कुछ योजनाओं ने व्यापारियों की नींद उड़ा रखी है। पहले नोटबंदी और बाद में जीएसटी का असर बाजारों पर अब तक दिखाई दे रहा है। व्यापारियों की यह नाराजगी भाजपा को कहीं न कहीं नुकसान पहुंचासकती है। हालांकि भाजपा को उम्मीद है कि हमेशा उसका साथ देने वाला व्यापारी वर्ग इस बार भी साथ देगा और भाजपा चुनाव में जीत भी दिलवाएगा।
एक तरफ व्यापारियों की नाराजगी है तो दूसरी तरफ शिवराजसिंह की गरीबों और वंचित समूहों के लिए चलाई गई योजनाओं का बोलबाला है। लाड़ली लक्ष्मी से लेकर संबल तक योजनाओं का खत्म न होने वाला सिलसिला है। इन योजनाओं ने बड़ी संख्या में गरीबों को अपनी ओर आकर्षित किया और ऐसे समूहों का भाजपा सरकार के प्रति रूझान बढ़ा जो कभी भाजपा के वोटर नहीं थे। कुल मिलाकर यह कहना बड़ी बात नहीं है कि इस बार का चुनाव बेहद दिलचस्प होगा और किसी भी दल के लिए यह आसान नहीं होगा।
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